रस्याण रोपणी की

रस्याण रोपणी की

आज सुबह से घर में चहल पहल सी थी । ना कोई खास त्यौहार था ना कोई दूसरी बात थी लेकिन 4 बजे से सभी घर वाले तैयारी करने पे लगे थे मई जून का महीना था अपनी गर्मियों की छुट्टियों में विवेक भी गाँव आया था विवेक पहली बार गाँव आया था । आता भी कैसे दादा दादी वर्षो पहले गाँव से दिल्ली बस चुके थे। या यूं कहूँ गांव से पलायन कर चुके थे । हां वो बात दूसरी थी गांव में उनका एक पुराना खण्डर हो चुका मकान अभी भी किसी के लौट आने की उम्मीद में अपने आँगन में किसी के बैठने की , अपनी रसोई में चूल्हा जलने की , लकड़ियों के धुएं की, बच्चों की किलकारियों के गूँजने की, दादा के साथ में बुजुर्गों के बैठ कर हुक्का और बीड़ी पीने की, रात को लैम्प की उस तेल की खुश्बू में दादी की कहानियों की, माँ के हाथ से छाँछ के परेडे(जिस बर्तन में गांव में दही को फेंट कर मक्खन निकाला जाता हैं और मट्ठा तैयार होता हैं) पर रोडा (मथनी जिस से दही को मथा जाता हैं) की आवाज़ से निकलने वाली संगीत की , गाय भैस के रम्भाने की , बैलों की घंटियों की , भेड़ बकरियों के बच्चों के बार बार छत में चढ़ने की , देवताओं के पूजा की घण्टी की , नागर्जा नरसिंह के नाचने की , बिल्ली के दूध के बर्तनों को गिराने की, कुत्ते की घर में बंदरों के भगाने की , ना जाने ऐसी कितनी यादों को अब भी अपनी यादों मे जीवित रखे किसी के एक बार फिर लौट कर सब को पुनः  जीवित करने की उम्मीद में जीर्ण हाल में खड़ा हैं जिस पर घास और पेड़ उग आए हैं।

वो बात अलग हैं भैजी भुला बोड़ा काका की कुछ समय तक उस मकान की उन बंजर पड़े खेतों की देख रेख की गयी पर कब तक एक एक कर के सभी शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार का बहाना कर के शहर चले गये और फिर शहर के होकर ही रह गये। हाँ अब कभी लौट कर जरूर आतें हैं मेहमान बन कर या शायद जो कुछ अभी गांव में रुके हैं उन्हें अपनी तरक्क़ी दिखाने। उन से उनकी उस खाली पड़ी जमीन उस खाली पड़े मकान की देख रेख की लागत वसूल करने ।जो पैसा तो नही होता लेकिन घी, दाल, अनाज, कोदा- झंगोरा आदि के रूप में होता हैं या कहूँ तो मुफ्त का खाने मज़े करने उस शहर की बेरुखी सी जिंदगी से कुछ समय अपनो का प्यार और दुलार पाने गांव चले आते हैं वो भी जब सब कुछ मुफ्त में मिले और आप राजा सी जिन्दगी गांव में गुजारे। आखिर क्यों नही आप उस खाली पड़ी जमीन के मालिक जो हैं जो आज भी जंगल मे लगे हुए फलों के पेड़ों की तरह हैं जिसकी देख रेख खुद हो जाती हैं बस जाकर उस से फल ही तोड़ने हैं कभी कभी तो कोई और भी लाकर दे देता हैं अगर उसे वहां से होकर आपके थोड़ा बहुत आस पास से भी गुजरना हो।

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