एक आधी अधूरी कहानी भाग-२
आधी अधूरी कहानी
भाग -2
उस बात को 2 साल से ज्यादा हो चुके थे जिन्दगी की उलझनों में मैं उसे कहीं भूल सा गया था ।
अब बात जनवरी की हैं हमारे क्षेत्र में मेला लगा था ।
ये मेला हर साल ना हो करके 6 साल में होता है मेले की अलग ही रौनक होती हैं सारे लोग जो देश विदेश में बस गये हैं या नौकरी कर रहे हैं सभी अपने गांव वापस आतें हैं सभी पुराने दोस्त मिलते हैं रिश्तेदार मिलते हैं । उस समय जो खुशी होती हैं हृदय में उसे शब्दों में बयां नही किया जा सकता।
खैर में भी अपने दोस्तों के साथ मेले का आनंद ले रहा था । दिन तो दिन रातें भी मेले में गुजर रही थी मेने शायद ही मेले के उन दिनों में घर में मुश्किल में रोज 1 घंटे से ज्यादा समय बिताया हो।
उस मेले में अपने पुराने स्कूल के दोस्त मिले दूर दूर के रिश्तेदार मिले थे खुशी का झलकना तो लाजमी था खैर मेला पूरा हुआ कुछ समय और बीत गया जिंदगी अपनी रफ्तार से चलती रही।
लेकिन लेकिन लेकिन
खास बात उस मेले में वो भी आयी थी जो इस कहानी की जरूरत हैं वो भी अपने रिश्तेदारों के साथ आयी थी । वहीं उसी घर में जहां उसे पहली बार देखा था।
उसने मुझे मेले में देखा था पहचान भी लिया था लेकिन मुझ से उसकी मेले में मुलाकात नही हुई थी ।
शाम को 4 बजे करीब मैं घर मे था वो भी मेरे घर के रास्ते वहाँ से जा रही थी बाहर शायद उसके रिश्तेदार मेरे घर वालों से बातें कर रहे थे सभी घर में ही बैठ गये थे चाय पानी पीने के लिये , मैं घर में अपने कमरे में ही रहा । सच कहूँ उन दिनों रिश्तेदारों की इतनी लाइन लगी थी पूछो मत एक तो गांव का परिवेश जहाँ हर घर के रिश्तेदार अपने रिश्तेदारों जैसे ही माने जाते है बात सीधी हैं कोई भी मेहमान किसी एक का नहीं होता पूरे गाँव का होता हैं।
यही बड़ी प्यारी बात हैं मेरे गाँवों की संस्कृति की।
मैं उस समय मेहमानों से मिल मिल कर परेशान हो गया था सब के एक ही जैसे सवालों के जवाब दे कर।
मैंने कमरे में रहना ही उचित समझा काफी देर हो गयी थी मेहमान अभी भी बैठे थे मुझे दोस्तों के साथ में जाने की देर हो रही थी। दोस्तों के फोन कॉल आने पे लगे थे। आने भी थे काफी समय बाद सभी दोस्त मिल रहे थे।
मैं जल्दी से तैयार होकर कमरे से बाहर निकला । बाहर मेहमानों को जल्दी मैं दुर से ही प्रणाम कर के निकलने लगा तभी मेरी नज़र वहाँ बैठी 2 लड़कियों की तरफ गयी एक को में पहचान गया था लेकिन दूसरी लड़की की मेरी तरफ पीठ थी। मैं जल्दी में था मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया लेकिन तभी वो मेरी तरफ को देखने लगी क्योंकि उसके रिश्तेदार मुझे से कुछ बात कर रहे थे मैं निकलने की फिराक में था। मैंने उसकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था लेकिन चेहरा कुछ पहचाना सा लगा मैं यही सोचते हुए यह कौन है ?
जल्दी से वहाँ से निकल गया खैर थोड़ी देर में मेरे दोस्त मिल गये हम सभी गाड़ी में बैठ कर चल दिये । दूर जाकर सभी ने एन्जॉय किया सभी अपनी अपनी बातें करने लगे। नौकरी की बातें पुराने दिनों की बातें, बातों बातों में पता नही चला समय कितना हो गया हैं रात काफी हो चुकी थी । और सभी को थोड़ा बहुत नशा भी हो रखा था।
खैर हम सभी गाड़ी को वहीं छोड़कर पैदल ही चलने लगे क्योंकि सभी आज बहुत सारी बातें करना चाहते थे। करते भी क्यों नही 6या 7 सालों बाद सभी मिले थे क्योंकि जनवरी का महीना था और ठंडा बहुत था हल्की सी बारिश के साथ शाम को बर्फ भी गिरी थी। तो फिसलन थी हम रोड छोड़ कर पैदल वाले रास्ते पर चल रहे थे.
तभी मेरे आगे चल रहे दोस्त का पैर फिसलता है और फिसलते हुए मेरे से टकरा जाता हैं मैं सब से पीछे था तो मैं भी अपना बैलेंस खो कर गिर जाता हूँ सामने मेरे पत्थर था । मेरे हाथों और चेहरे पर काफी चोट लग गयी थी अब चलना भी मुश्किल लग रहा था क्योंकि बर्फ में चलना पहले ही मुश्किल था ऊपर से चोट अलग लग गयी थी।
सुबह घर पहुंच कर जल्दी से कपड़े बदले जिन पर खून लगा था और बिना किसी को मिले जल्दी से डॉक्टर के पास चला गया। अब घर में जाना था तो शायद सवालों के जवाब अभी मेरे पास पर्याप्त नही थे में मेले में ही चला गया।
बाद में घर पे बहाना बना कर बात को मैने टाल दिया था।
अब मेला भी खत्म हो चुका था
लगभग सभी मेहमान जा चुके थे आपस में बाते चल रही थी तभी मुझे पता चला कि उस दिन वो लड़की और कोई नहीं वहीं थी मैं थोड़ी देर में बहाना बना कर उस से मिलने को चला गया लेकिन मुझे वहां कोई नही मिला वो थोड़ी देर पहले निकल चुकी थी । मैं भी वहाँ से बहाना बना कर निकल गया , और जल्दी से उसी रास्ते से जाने लगा जहां से वो गाड़ी के लिये निकली थी मेरी धड़कन बहुत तेज हो रखी थी मन में कई ख्याल चल रहे थे।
मैं भी जल्दी से वहाँ पहुँच गया था जहाँ वो सभी खड़े थे मैं उनके पास जाने का कोई बहाना ढूढ़ने लगा लेकिन तभी वहां मेरा एक दोस्त भी आगया था जो वापस अपनी नौकरी पर जा रहा था वो मुझ से बातें करने लगा ।तभी वहाँ गाड़ी आगयी थी और सभी उसमें बैठ कर चले गये।
आज भी मेरी मुलाकात अधूरी रह गयी थी।
लेकिन आज उसे देखना था गौर से जो में नहीं देख पाया था,।
काफी देर तक मैं उस गाड़ी को देखता रहा जिसमें वो जा रही थी और तब तक देखता रहा जब तक गाड़ी निगाहों से दूर नहीं हो गयी।
समय फिर से गुजरता गया।
फिर मैं भी अपनी जिंदगी की दौड़ में शामिल हो गया।
खैर वक्त ने फिर करवट बदली पूरे 4 साल बाद मेरा सामना एक दिन उन से हुआ । इतेफाक कहूँ या किस्मत में अपने गाँव जा रहा था और वो अपने किसी रिश्तेदार के गाँव जो मेरे गाँव से लगभग 20 किलो मीटर पहले पड़ता था।
मैं उसे पहचान नही पाया क्योंकि वो इन 4 सालों में काफी बदल गयी थी वो बस में मेरी ही सामने वाली सीट मैं थी जहाँ पहले से 2 बूढ़ी औरतें बैठी थी! मेरे बगल कि सीट खाली जिसपर भी मेरा ही कब्जा किया था और मैं बस की खिड़की से ठण्डी हवा का आनंद लेने लग गया। थोड़ी दूर जाने पर मेरे पास एक लड़की आयी और खिड़की वाली सीट मागने लगी मेने साफ मना कर दिया था क्योंकि इतने लंबे सफर में बिना खिड़की के सफर मुश्किल होता लेकिन फिर मेने उसे वो सीट उस लड़की को बैठने को दी थोड़ी दूर जाकर वो उतर गयी थी।
मैं फिर से अपनी खिड़की वाली सीट पर बैठ कर सो गया था और बाकी गाड़ी में सफर करने वाले अपने सफर करने से पहले खाये खाने का प्रदर्शन करने लग गए थे मतलब उल्टी कर रहे थे।
उसी समय वो अपनी सीट से उठ कर मेरे पास आती हैं और खड़की मांगती है मैं अब सोचने लगा बड़ी मुसीबत हो जाएगी अगर ये उल्टीयां करने लगी तो मुझे भी उल्टी हो जाएगी ।लेकिन चुपचाप वहां बैठ गयी। मैं भी अपने फोन में म्यूजिक लगा कर कभी कभी उसकी तरफ देखता।
कुछ तो ऐसा लग रहा था जिसे मैं जानते हुए भी अनजान था ।
थोड़ी देर में वो अपने पास से पानी की बोतल निकालती हैं और पानी पीने के बाद मुझे भी बोतल देती हैं मैं मना करता हूँ।
वो कहती है आप उस गाँव से हो ना।
मैं -हाँ
मैं- मैंने आपको लेकिन पहचाना नहीं?
वो मेरे बारे में और भी बातें बताती है।
अब मैं बिल्कुल आश्चर्यचकित था ये कोन है जो सब कुछ जानती हैं मेरे बारे में उस से उसने अपना नाम और गाँव का नाम बताया लेकिन मुझे उसका ख्याल तब भी नहीं आया।
थोड़ी देर बाद वो बोली में आपके गाँव मेले में आयी थी जब आप को चोट लगी थी और आप उस समय भागते हुए गाड़ी तक भी आये थे सायद किसी से मिलने ।
अब कुछ कुछ याद तो आ रहा था लेकिन साफ कुछ भी नहीं हो पाया था कुछ देर बाद वो कहती हैं वो उस से पहले शादी में आयी थी अपने रिश्तेदारों के साथ।
इतना कहते ही मुझे अपनी आंखों और किस्मत पर यकीन नहीं हो रहा था ।
मैं उसे आज मिल रहा था और बातें कर रहा था जिससे कुछ कहने के लिए ना जाने मैंने कितनी बार आइने से बातें की थी कितने ख़्वाब देखे थे और जब आज वो मिली थी तो उसे मैं पहचान नही पाया था।
............जारी रहेगी ........
पार्ट-3
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