माहवारी नहीं कोई बीमारी

रात के शायद 2 या 3 बजे अचानक उसे पेट में दर्द उठता हैं । वो समझ जाती हैं उसके periods शुरू हो गये हैं लेकिन उसे अब चिंता इस दर्द की नहीं ऑफिस के काम की थी आज उसकी एक बहुत जरूरी मीटिंग थी प्रोजेक्ट भी बहुमूल्य था । सुबह उठकर उसी दर्द में वह अपने ऑफिस चली जाती हैं।
प्रोजेक्ट को भी समझती हैं मीटिंग पूरी हुई ।
शाम को जब वो अपनी गाड़ी में बैठ कर घर को वापस लौटती हैं उसे याद आती हैं कैसे कई बार उसे इन्ही पीरियड्स के कारण कितना कुछ झेलना पड़ा था ।

स्कूल के दिनों में लड़कों के द्वारा मज़ाक किया जाता था। घर में पूजा करने से , पानी भरने से यहाँ तक खाना बनाने पर भी रोक थी ।
खैर वो आज अच्छी पोस्ट पर हैं नाम हैं इज्जत हैं। सब कुछ हैं लेकिन अब भी हर महीने की इस प्रक्रिया से तो गुजरना पड़ता हैं।

लेकिन आज हम एडवांस तो हो गए हैं लेकिन आज भी हमारे देश मे इसे एक बीमारी ही माना जाता हैं ।

इसके बारे में बात करने में हम शर्म महसूस करते हैं आखिर लेकिन क्यों वो मेरी या आपकी पत्नी, बहन, माँ या कोई भी स्त्री हो सकती हैं या सीधे कहूँ ये सभी महिलाओं की एक सामान्य प्रकिया हैं ।

फिर भी हम आज उन्हें मज़ाक का पात्र क्यों बनातें हैं ।

अरे उसकी तो date आयी हैं ।

तुम्हें पीरियड्स होतें हैं ?

देख उसे ब्लीडिंग हुई हैं कपड़े देख !

वो आज कल इस लिये नही आ रही हैं क्योंकि उसे औरतों वाली बीमारी हुई हैं।

और पता नहीं क्या क्या ऐसे ताने कई लड़कों द्वारा स्कूल,कॉलेज में या  कार्यालय में अमूमन सुनाई देते हैं।

यहाँ तक आज भी कई जगहे ऐसी हैं हमारे देश में जहाँ पीरियड्स के समय लड़की को किसी अंधेरे कमरे में रखा जाता हैं मंदिरो में आज भी पूजा वर्जित हैं लेकिन कामाख्या देवी मंदिर का वो सफेद कपड़ा जिसे लाल होने पर आशीर्वाद मानते हो उसे क्यों ग्रहण करते हो। वो कपड़ा भी स्त्री की इसी प्रकिया से जुड़ा हैं ।

हम 21वी सदी में हैं

हम एडवांस तो हुये हैं पर शिक्षित नहीं हुए हैं शायद शिक्षित होते तो आज इस देश इस दुनियां में ऎसी बातें नही करनी पड़ती।

सोच बदलने की बहुत आवश्यकता हैं

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