श्री घण्टाकर्ण गाथा २

जय श्री घण्टाकर्ण देवता

जब चमोली नामक व्यक्ति द्वारा देवता के लिंग पर कुल्हाड़ी से प्रहार किया जाता है तब देवता का लिंग त्रि खण्ड (3 हिस्सों में) हो जाता है पहला खण्ड़ जहाँ बडियारगढ़ में गिरता है दूसरा खण्ड़ वहीं धारकोट (धार दुंदसिर पट्टी) भूमि में गिरता है।। जहाँ देवता पुनः अवतरित होते हैं

लोस्तु बडियारगढ़ में श्री घण्टाकर्ण देवता के उत्पन होने की कथा ।।।

जब देवता के लिंग का एक हिस्सा लोस्तु बडियारगढ़ में गिरता हैं तब देवता बडियारगढ़ में स्थान लेते हैं यहाँ पहले से अन्य देवता मौजूद थे तब देवता यहाँ अपना परिचय देते हैं जो लोकगाथा इस प्रकार है।

लोस्तु बडियारगढ़ में देवगढ़ी नामक स्थान पर एक थोकदार(उस समय राजा का शासन था अतः थोकदारी प्रथा थी) भण्डारी  रहते थे उनके ही घर में एक बालक कार्य करता था जो कैंतुरा जाती का था ।।
उस बालक द्वारा प्रायः थोकदार के यहाँ समस्त कार्य किये जाते थे ।।
थोकदार के यहाँ कार्य करने के कारण उस बालक के कोई अन्य मित्र भी नहीं थे ।।
वह बालक जब जंगल में गाय और बैलों को लेकर जा रखा था तब उसे सर्वप्रथम वहाँ घंडियाल देवता के दर्शन हुए थे जब यह बात उस बालक द्वारा अन्य अपने गवैर(चरवाहे) साथियों को बतायी जाती हैं तो वे सभी उस बालक का मज़ाक उड़ाते हैं तथा उसे प्रायः देवता निकालने को कहते थे जिस से उनका मनोरंजन हो सके इसी मज़ाक में जब एक बार उस बालक को गारे(कंकड़) थमा कर उन से चमत्कार करने को कहते हैं तब बालक द्वारा कंकड़ से चावल के दाने बना दिये जाते हैं।

चावल के दानों को देख कर सभी आश्चर्यचकित हो जाते हैं पुनः उस बालक द्वारा उन चावल के दानों को  हल्दी से पीले कर दिए जाते है इसके पश्चात उन चावलों को जौ में तथा जौ को हरियाली( जौ के अंकुरित होने पर उत्पन पौधे) में बदल दिये जाते हैं ।।

उस बालक के इस चमत्कार की बात सारे गाँव मुल्क में फैल जाती हैं जिसके पश्चात बालक को पूछने पर पता चलता हैं यह सब घण्टाकर्ण देवता का चमत्कार हैं।।

घण्टाकर्ण देवता यह नाम सभी के लिए नया एवम संस्कृत से होने के कारण अलग था बच्चे की बात को कोई जादू टोना या किसी अन्य देवता का चमत्कार मान कर सभी भूल जाते हैं ।।

कुछ समय पश्चात ही पूरे मुल्क में देवता का दोष उत्पन्न हो जाता है लोगों की गाय भैस दूध देना बंद कर देती हैं ।। लोग परेशान रहने लगते है ऐसा जब लगातार काफी समय तक होता है तब सभी लोग अपनी समस्या लेकर थोकदार के यहाँ एकत्रित होते हैं ।।
सभी पंचो के साथ जब मुल्क के लोग देवगढ़ी के चौक में एकत्रित होते हैं वहाँ पर इसे किसी देवता या भूत का दोष मानकर अपने देवताओं का  आहवान किया जाता है ।।

तब उसी समय स्वयम श्री घण्टाकर्ण देवता सभी के सामने अपने असली रूप में उत्पन्न होते हैं जहाँ देवता सभी को अपना परिचय देते हैं।।

देवता की बातों से सभी देवता को अपने मुल्क में स्थान देने पर सहमति देते हैं ।।

देवता की कृपा से सभी प्रकार की बाधा समाप्त हो जाती हैं
भक्तों द्वारा अनजाने में देवता का जो अनादर होता है देवता उस सब को क्षमा करके अपने मंदिर बनाने की बात कहते हैं पहले देवता को देवगढ़ी में उसी स्थान पर पूजा गया जब देवता को सभी क्षेत्र वासियों द्वारा किये गए वादे के अनुसार मंदिर बनाने की बारी आयी तब देवता द्वार सभी मुल्की भक्तों से अपने मंदिर के प्रवेश द्वार हेतु भेकुला नामक पौधे की लकड़ी से खोली बनाने की बात कहीं गयी।

सभी मुल्की अब इस बात से परेशान हो जाते हैं कि भेकुला जो कि एक काटें का पौधा होता है उस से भला कैसे इतना ऊँचा मंदिर का प्रवेश द्वार बन सकता हैं। यह देवता भी हमारी कैसी परीक्षा ले रहा है और कैसा दंड अब हमें दे रहा है सभी लोग इसी सोच में परेशान हो जाते हैं।

लोगों द्वारा भेकुला की खोली बनाने में असमर्थता जताने पर देवता कहते है तुम परेशान मत हो मैं कला होली (मुझ में शक्ति होगी, ) मैं खुद ही भेकुला के पेड़ का प्रबंध कर दूँगा।।

तुम सभी जाति के मुल्की प्रातः पूर्व दिशा की ओर जंगल में जाना जहाँ तुम्हे भेकुला का पेड़ मिल जाएगा ।।

देवता के कहे अनुसार सभी मुल्की जंगल में जाते हैं जहां जंगल में एक विशाल भेकुला का पेड़ दिख जाता हैं सभी देवता के इस चमत्कार को देख कर हैरान थे कि एक छोटे से कांटे वाले  पौधे का इतना विशाल पेड़ कैसे हो सकता हैं।

सभी मुल्की तब एक दिन ढोल, बाजणा ,भंकोरों के  साथ उस पेड़ को लेने के लिये जाते हैं ।।

इस प्रकार से तब देवगढ़ी के ठीक ऊपर एक समतल धार वाले स्थान पर देवता का मन्दिर बनाया जाता हैं तथा मंदिर की खोली भेकुला के उसी पेड़ की बनायी जाती है ।।

जिस स्थान पर देवता का मन्दिर बनाया गया उस स्थान का नाम तब से देवता के नाम पर भी घण्डियाल धार से प्रसिद्ध हुआ।।।

उसके बाद देवता की लोस्तु बडियारगढ़ में देवता की राशि कुम्भ राशि के अनुसार हरिद्वार में कुम्भ के अनुसार ६ वर्षों में अर्धकुंभीय जात(यात्रा, मेला) एवम १२ वर्षों में पूर्णकुंभीय जात का विशाल आयोजन किया जाता हैं।।
जिसमें समस्त क्षेत्र के अलावा देश विदेश से भी लाखों श्रद्धालु देवता के दर्शनों को आते हैं।
इसके अलावा ३ वर्षों में भी , एवम समय समय पर देवता की विशेष पूजा अर्चना की जाती हैं।।

घण्टाकर्ण देवता की कुंभीय जात के अलावा लोस्तु बडियारगढ़ में देवता की गंगा स्नान एवम केदार यात्रा का भी विशेष महत्व हैं।

श्री घण्टाकर्ण देवता की केदार एवम गंगा स्नान की यात्रा ।।।

जात से ठीक पहले घण्टाकर्ण देवता ध्वजा, निशाण, एवम अन्य देवताओं के ध्वजा, निशाण देवगढ़ी मन्दिर से गंगा स्नान के लिये जाते है जहाँ माँ अलकनंदा में सुपाणा घाट पर सुबह के पर्व में देवता के निशाणों , ध्वजों को ढ़ोल,भंकोरों की सुमधुर धरती आकाश को जगाने वाली ध्वनि में स्नान कराया जाता हैं इसके कुछ समय पश्चात देवता  की जात प्रारम्भ होती हैं।

ठीक इसी प्रकार से २४ सालों में देवता अपने आराध्य देव महादेव की केदार यात्रा पर जाते हैं जिस प्रकार से माँ नंदा देवी की यात्रा अनेक पड़ावों से होकर जाती है उसी प्रकार श्री घण्टाकर्ण देवता की यात्रा अनके पांडवों से होकर बाबा केदार के दर्शनों को जाती है तथा बाबा केदार के दर्शन यात्रा पूर्ण करके देवता वापस अपने मुल्क लौट आते हैं।।

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घंडियाल देवता केदार यात्रा

लोस्तु में देवता के चमत्कारों से जुड़ी कुछ लोकगाथायें ।।।

लोस्तु बडियारगढ़ पहले एक ही पट्टी लोस्तु-बडियारगढ़ के नाम से प्रसिद्ध थी। ।
लोक कथाओं के अनुसार स्वर्ग सीढ़ी नामक सीढ़ियों से उतरने के पश्चात झण्गुली नामक स्थान एवम लोदेश्वर महादेव मंदिर के बीच में एक राक्षस (भूत)  रहता था जो प्रायः वहाँ से गुजरने वाले यात्रियों को परेशान करता था

एक बार जब देवता अपनी गंगा स्नान की यात्रा से वापस लौट रहे थे तब लोगों ने उस स्थान पर देवता से उस पिचास से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की देवता ने भक्तों के आग्रह पर उस राक्षस से युद्ध किया राक्षस ने  अपनी पराजय होती देख नदी पार एक विशाल शिला के नीचे अपने आप को छिपा लिया।

नदी के दूसरे ओर रास्ते से तब देवता ने अपने हाथ में उपस्थित गजा (कटार) से उस शिला पर एक प्रहार किया प्रहार से शिला दो हिस्सों में विभाजित हो गयी एवम उस राक्षस का भी शिला के निचे अंत हो गया ।।

तभी से उस शिला के हिस्सों को आधार मान कर ऊपरी हिस्से वाले क्षेत्र को लोस्तु एवम दूसरे हिस्से वाले क्षेत्र को बडियारगढ़ माना जाता हैं।।

माँ मठियाणा देवी के मंदिर में सर्वप्रथम पशुबलि का देवता द्वारा बन्द करवाया जाना ।।।

पुराने समय में जब मठियाणा देवी के मंदिर (मठियाणा खाल पट्टी भरदार) में विभिन्न क्षेत्र के लोगों द्वारा पशुबलि बाग्गी(नर भैंस) की बलि दी जाती थी उसी समय घंडियाल देवता भी अन्य देवता की भांति अपने मुल्की भक्तों के साथ परंपरा के अनुसार देवी के मन्दिर में जा रहे थे ।।
उस समय गढ़वाल के अन्य क्षेत्रों से लगभग सभी देवी देवता मठियाणा देवी के मंदिर में जाते थे ।।

भरदार पट्टी में रास्ते मे एक धारा(पानी का स्रोत) था जहाँ पर देवता  के पश्वा स्नान करते थे उस समय श्री घंडियाल देवता के चमत्कारों की कहानियां सुन कर भरदार पट्टी के लोगों द्वारा देवता की परीक्षा लेने के लिए उस स्थान पर स्नान के लिए लोटे की जगह एक विशाल ९ मण की  लोहे की बारी(कड़ाई) पानी के नीचे भरने के लिये रख दी गयी ।

तब श्री घण्टाकर्ण देवता ने पश्वा पर अवतरित होकर एक ही हाथ से उस पानी से भरी हुई उस विशाल कड़ाई को उठा कर स्नान किया । तथा अपने भक्तों को आदेश दिया कि अब से यह कड़ाई लोस्तु मेरे मंदिर में रहेगी जो आज भी मौजूद हैं।
तथा उसके बाद से श्री घण्टाकर्ण देवता के आदेशानुसार तब से लोस्तु बडियारगढ़ से मठियाणा मंदिर में पशुबलि बन्द कर दी गयी ।।।

जारी रहेगी ......

शुभम सिंह भण्डारी (शुब्बी)

बाड़ूली ब्लॉग

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टिप्पणियाँ

  1. बहुत-बहुत धन्यवाद भाई जी आपका इतनी अच्छी जानकारी शेयर करने के लिए कृपया आप बताने का प्रयास करें कि जब देवता के लिंग के तीन हिस्से हेतु यह तीनों किन-किन स्थानों पर गिरे हैं

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