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खुदयां मसाण

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पर्सी शहर बटीं औंण का बाद बटीं भैजी कु बुखार अर हाथ खोटों पीड़ा कम नि छे होणी दारू अर दवाई भी करायली छे पर भैजी अभी भी परेशान छा। बड़ा समय का बाद त भैजी आपरा घौर आयी छा परदेश बटीं ...

दादा कु हुक्का बोडा की बीड़ी

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ब्याकुनी बगत तिबारी मा बैठाया चेतु भैजी हाथ मा चा कु गिलास पकड़ी क चा प्योंण  लगया छा त वख बटिन हरषु बोड़ा भी पीठी उन झोला अर हतियों  मा रविंस की लाठी पकड़ी बाटा लगया छा  चेतु भैज...

बग्वाली का बहाना पुराणि रीत जियोन्दा।।

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चल लठ्यला हम भी ये त्यौहार गौं घुमेन्दा बग्वाली का बहाना पुराणी रीत जियोन्दा।। ब्वे का हाथ की स्वाली , पकौड़ी , गुलगुला चाखेन्दा । गैल्यों गैल यी औंसी रात भेला खेलयोन्दा ।। ...

घौर बौडी जा

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भूली बिसरी गयी अपर बार त्यौहार ना पंचमी याद आंदि ना मकरेणि गंगा स्नान कु जांदी । ना बग्वाली का भेला याद छंन ना तांदी झुमेलों । ना अब गुलाबन्द ना आपरी थौल मेलु की याद गौला की हंसुली ना हातियों की धगुली । ना याद चा शिव कु मैती रोण कु ना याद चा नन्दा की धियाण होण कु ना याद चा चैत का फुलारी कु ना याद चा ब्यो मा की मांगली कु। ना अब गौं मा रामलीला होंदी ना अब पण्डों का पवाडा लग्दिन। ना नरसिंग अब दोष लगदु ना नगर्जा अब गौं मा नाचदु।। ना माधो भण्डारी अब बीर भड़ रे ना जीतू बगड़वाल अब बाँसुरिया रे ना घसेरी अब गीतु भौंण पुरेन्दिन ना घुघुती हिलांश डालियों बासदन ना तीलू रौतेली जणि क्वी बाला ह्वे ना रामी जणि क्वी नारी ह्वे ५२ गढ़ भी अब सुनपट विरान छंन घौर कुड़ियों मा मूसा बिराला भी नि छंन ना ग्वेरु कु बाँसुरी सुणेन्दी ना हल्या कु हलकरु भी नि चित्यदु ना दे-दादी की कथा-कहानी रे ना बाटा-घाटा भुत भेरू रें।। ना औजी अब बारू त्यौहारु पर ढोल बजोंदीन ना क्वी अब दाना-स्याणों मुख लगोंदीन ।। ना गढ़वाली भाषा बोली समझ औंदी ।। ना हम तें अब गौं मुल्के सुध-बुध रौंदी।। अरे औंदी किले नि याद ...

रस्याण रोपणी की

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रस्याण रोपणी की आज सुबह से घर में चहल पहल सी थी । ना कोई खास त्यौहार था ना कोई दूसरी बात थी लेकिन 4 बजे से सभी घर वाले तैयारी करने पे लगे थे मई जून का महीना था अपनी गर्मियों की छुट...

रस्याण रोपणी की भाग 2

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खैर विवेक ने जब से गाँव में कदम रखा था उसे बस एक ही जैसा प्यार पूरे गाँव से मिला था खुश तो विवेक भी बहुत था यहाँ तो प्यार की वर्षा हो रही थी जिसने कभी दिल्ली की भाग दौड़ भरी जिन्दग...