बग्वाली का बहाना पुराणि रीत जियोन्दा।।
चल लठ्यला हम भी ये त्यौहार गौं घुमेन्दा
बग्वाली का बहाना पुराणी रीत जियोन्दा।।
ब्वे का हाथ की स्वाली , पकौड़ी , गुलगुला चाखेन्दा ।
गैल्यों गैल यी औंसी रात भेला खेलयोन्दा ।।
नतर अपर गौं-मुल्क हम बिसरी दयोंन्दा
बग्वाली का बहाना पुराणी रीत जियोन्दा।।
जरा बैख-बांन्दू झुमेलों तांदी देख्योला
वे पल्या डेरा का दादा हुक़्क़ा भी गुग्डोला ।।
माल्टा- नारंगी की खट्टी-मिट्ठी फैंश भी चखेंदा।
बग्वाली का बहाना पुराणी रीत जियोन्दा।।
चल तिं दादी कु बग्वाली कु क्लयों देख्योन्दा ।।
बाँज का लाखड़ों की सेरा मा आग जगायेन्दा।।
वल्य-पल्या खोला की भी बग्वाली देख्योन्दा।।
बग्वाली का बहाना पुराणी रीत जियोन्दा।।
पूजा की थाली भी सजेदयोंला
दयेली-खातरी भी दिवा जगोला।।
2-4 परेडा न्यार का भी फुक्योंदा
बग्वाली का बहाना पुराणी रीत जियोन्दा।।
चर्खी,अनार,रॉकेट,मुर्गा छाप पटाखा फोड़ी देंदा
साँप की गोली अर फुलझड़ी छोटा छोरों दी देंदा।।
सेरा घौर दिवा, मोमबत्ती सी चमकैयेन्दा।
बग्वाली का बहाना पुराणी रीत जियोन्दा।।
ताश खेलन वळून भी पुछ्योन्दा
द्वी घुट दारू का हम भी चाखयेन्दा।।
मंडाण आज बग्वाली सब्बु दगडी लगयेन्दा
बग्वाली का बहाना पुराणि रीत जियोन्दा।।
#शुब्बी
#बाड़ूली
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