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कभी लिखूंगा ना तुम्हें

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हां लिखूंगा ना,  कभी दास्तां अपनी, जिसमें तुम और बस तुम हो ।। मैं हर पल रहूं , साथ तेरे साया बनकर पर , उसमें  मैं - मैं ना होकर, उसमें  मैं तुम रहूं,  कहां मैं सोचूं तुम्हें चांद की उन परिधियों से , कहां धरा को अस्तित्व से जुदा कर सकूं। शांत गुमशुदा या मौन होना बस एक भ्रम मात्र है, तेरे आलिंगन से बढ़ कर कुछ यथार्थ नहीं।। प्रेम की प्रकाष्ठा के गहरे सागर में गोते लगाना हो या फिर मदमस्त पवन के वेग के अनुकूल बहना । तुम से ही तो सब है आदि अनंत के व्योम में शून्य के आधार सा।।। मुझे अबोध से मुझे बोध होने तक , मेरे उग्र व्यवहार से मेरे मूक होने तक , मेरे महत्वाकांक्षी से मेरे विमुख होने तक , मेरे लालची से संतोषी होने तक । इस जीवन के हर हिस्से हर किस्से में तुम सदैव रहोगी , जिस तरह किसी पौधे के जीवन में बीज का महत्व होता है किंतु उस बीज से पौधे या पेड़ के रूप में विकसित होने के लिए वातावरण के यथार्थ तत्वों के समायोजन में मृदा , जल और वायु के अतरिक्त सूर्य के प्रकाश , जलवायु के अनुकूल परिस्थितियों के बहुमूल्य योगदान के अदृश्य होने की हम तुलना नहीं करते है । उसी प्...

प्रेम और समर्पण ।।

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समर्पण कर दिया खुद को तुम्हें जो तुम करना चाहो कर लो  चाहे तो ठुकरा लो चाहे तो स्वीकार लो कनक सा हूं श्रृंगार करो या मदहोश कर लो ।।। कभी कभी प्रेम में जरूरी नहीं को वो सब प्राप्त हो जिसे हम चाहे।। दूर होते हुए  भी किसी के अहसास में भी वो  सब होता है । जो सब पास होने पर भी किसी से नहीं होता है ।।  मैं प्रेम में हमेशा स्वार्थी रहा हूं जिसे चाहा उसे हासिल करने की कोशिश की । जब नसीब से हासिल नहीं हुई तो भोलेनाथ से हमेशा उसे पाने की प्रार्थना की ।। समय अपनी गति से चलता रहा और हम उन यादों से निकलते रहें कभी बस यूंही उन्हें सोचते समझते अपनी तन्हाइयों में खुद से ही अपनी गलतियों को गिनते  ।  मनोरोगी बन बैठे थे किसी को बस अपना समझ कर। वो कहते है ना इश्क का रोग ऐसा रोग है जिसका कोई वैध भी उपचार नहीं कर सकता ।  बस ये ख्याल ही खुद में कुरेदते है मैं ने गलती क्या की है ? हर समय हर वक्त हर जगह पर उनका साथ ही तो दिया था। अपनी जिंदगी को बदल दिया था एक उनके कहने से तो सिगरेट , शराब को छोड़ दिया था ।। उसके फैमिली स्टेटस को मैच करने के लिए जिसने सालों से किताब...

दोस्त / प्यार

धीमी धीमी सी चल रही साँसे , आवाज़ गले से बाहर आने को आतुर , धुँधली सी कुछ यादें कुछ चेहरे जो अब कहीं ओझल से होते नज़र आ रहे थे। पलकें जो खुलना चाहती थीं पर फिर ना जाने क्यूँ एक मंद सी ...

रूड़ीया रुड़ी Bamboo weaver

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रूड़ीया या रुड़ी Bamboo weaver रुड़ीया ये शब्द सुणि कुछ याद भी आयी या  कुछ भी याद नि आयी। अरे हाँ याद कन करि औंण हम त अपरा गौं गुठयार छोड़ी ते भेर बसी ते शहरी बणी गया बल ।। बोलनक ते उ क्या बोल्द...

एक आधी अधूरी कहानी भाग -४

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आधी अधूरी कहानी भाग -४ बस अब मुझे यही सुनना था आज वो कहना क्या चाहती हैं अगर हाँ कह दिया तो मुझे सब कुछ मिल जाएगा और उसे बता भी दूँगा की जल्दी ही उस से मिलने आ रहा हूँ। अगर ना कहा तो ?? ना तो वो कह ही नहीं सकती मुझे पता हैं ना बस मन मे यही ख्याल चल रहे थे। ना जाने उसी पल मैने कितने सपने बुन लिये थे। अचानक उसकी आवाज़ से मेरी चुप्पी और ख्याल दोनों टूटे क्या हुआ चुप क्यों हो। अरे नहीं तुम कुछ कह रही थी तो ध्यान से सुन रहा था लेकिन तुमने कुछ कहा ही नहीं। अरे रहने दो कुछ नहीं हैं। अरे यार बोलो ना तुम अपना नहीं समझती हो ना? आज ना घर पर मेरी शादी की बात चल रही थीं । लड़का देखने आने वाला हैं। मेरे सारे सपने अचानक से टूट गए थे। आँखे नम सी हो गयी थी गला रुआंसा हो गया था। फिर भी मैने पूछा तो तुम ने क्या कहा   । मना क्यों नहीं किया। कब तक मना करूँगी यार । तुम तो जानतें हो ना पहाड़ में लड़की जवान बाद में होती हैं और शादी के लिये सभी लड़का पहले ढूंढने लगते हैं। और तुम क्यों रो रहे हो ? अरे कौन रों रहा हैं मैने कहा? लेकिन शायद उस बनावटी आवाज़ में वो दिल का दर्द भी समझ रही थी । म...

आधी अधूरी कहानी भाग -३

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आधी अधूरी कहानी भाग 3 आज तक इस क़िस्मत ने कई बार धोखा दिया था। लेकिन आज शायद उम्मीद से लाख गुना बढ़ कर दिया था। मैंने कुछ देर तक उसके ही चेहरे को निहारा था यकीनन वो मुझे बहुत खूबसूरत लग रही थी अब और लगना भी लाजमी था। मुझे उम्मीद नहीं थी तुम मुझ से कभी बात भी करोगी और मुझे मिलोगी। मेरे पहले शब्द यही थे। क्यों तुम्हें मैं इतनी बुरी और घमंडी लगती हूँ? उसने कहा अरे...नहीं।।।। मैं....... तब तक वो बोली छोड़ो भी तुम ये बताओ कैसे हो ? कहाँ जॉब कर रहे हो? अब तो बहुत ही अच्छा हूँ देख ही रही हो औऱ जॉब तो बस आज यहाँ कल कहाँ? एक एक शब्द इतने तोल मोल के बोलना चाहता था कि ... लेकिन शायद दिल दिमाग और जबान तीनों अलग अलग ही काम कर रहे थे सच में मेरे बस में नहीं थे। बस बातें शुरू हुई और अब खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी वर्षों का प्यासा था जिस एक मुलाकात को जिस एक आवाज़ को वो आज अचानक से सावन की वर्षा बन कर बरस रही थी। उसकी पढ़ाई भी अब पूरी हो गयी थी। आगे डॉक्टर बनने का सपना था उसका .... बस रुकी कुछ और सवारी बस में सवार हुई। एक बुजुर्ग महिला भी बस में आयी थी और मेरी तरफ सीट की उम्मीद से देख रह...

एक आधी अधूरी कहानी भाग-२

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आधी अधूरी कहानी      भाग -2 उस बात को 2 साल से ज्यादा हो चुके थे जिन्दगी की उलझनों में मैं उसे कहीं भूल सा गया था । अब बात जनवरी की हैं हमारे क्षेत्र में मेला लगा था । ये मेला हर साल ना हो करके 6 साल में होता है मेले की अलग ही रौनक होती हैं सारे लोग जो देश विदेश में बस गये हैं या नौकरी कर रहे हैं सभी अपने गांव वापस आतें हैं सभी पुराने दोस्त मिलते हैं रिश्तेदार मिलते हैं । उस समय जो खुशी होती हैं हृदय में उसे शब्दों में बयां नही किया जा सकता। खैर में भी अपने दोस्तों के साथ मेले का आनंद ले रहा था । दिन तो दिन रातें भी मेले में गुजर रही थी मेने शायद ही मेले के उन  दिनों में घर में मुश्किल में रोज 1 घंटे से ज्यादा समय बिताया हो। उस मेले में अपने पुराने स्कूल के  दोस्त मिले दूर दूर के रिश्तेदार मिले थे खुशी का झलकना तो लाजमी था खैर मेला पूरा हुआ कुछ समय और बीत गया जिंदगी अपनी रफ्तार से चलती रही। लेकिन लेकिन लेकिन खास बात  उस मेले में वो भी आयी थी जो इस कहानी की जरूरत हैं वो भी अपने रिश्तेदारों के साथ आयी थी । वहीं उसी घर में जहां उसे पहली बार देखा थ...

एक आधी अधुरी कहानी

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एक आधी अधूरी कहानी। घर में शादी का माहौल था सभी जोरों की तैयारियों में लगे थे गाँव की शादी का माहौल ही अलग होता हैं सभी मिल जुल कर शादी वाले घर में हर काम में मदद करते हैं और मे...