एक आधी अधुरी कहानी
एक आधी अधूरी कहानी।
घर में शादी का माहौल था सभी जोरों की तैयारियों में लगे थे
गाँव की शादी का माहौल ही अलग होता हैं सभी मिल जुल कर शादी वाले घर में हर काम में मदद करते हैं और मेरे गाँव में ये एकता अलग ही झलकती हैं। खैर में भी अपने काम में लगा था दूर गांव के पंचायत भवन से बर्तन ले जाने के बाद सभी दोस्तों के साथ बैठ कर चाय की चुस्कियां ली फिर सभी दोस्त अपने और कामों में व्यस्त हो गए और में भी शादी वाले घर की लाइट की सजावट को लगाने में लग गया तभी बगल में भाई ने आकर कहा मुझे अभी इस काम में समय हैं लाइट वैसे भी शाम तक चाहिये तू थोड़ा रिश्तदारों को लेने चला जा घर गाँव से थोड़ा दूर होने के कारण चढ़ाई हैं घर तक आने में सामान के साथ और परेशानी लगती हैं में रिश्तेदारों को लेने चला गया, शाम हो गयी थी शाम को जब मैं फिर से लाइट लगाने में लगा एक कमरे में पुराना बल्ब जो शायद आज की तेज रोशनी में धीमा लग रहा था वहाँ के मेहमानों को अच्छे से देखने में सहायक नहीं था। मुझे उसे बदलने को कहा गया भीड़ थी उस कमरे में क्योंकि वहाँ कुछ गाँव के लोग बहुत दिनों बाद मेहमानों से मिल रहे थे कुछ तो सालो बाद हमारे गाँव आये थे। बल्ब बदलने के बाद तेज रोशनी में नज़रें घुमाई तो कुछ कुछ अपरिचित चेहरे नज़र आये उन सब को प्रणाम कर के में बाहर निकल गया। लेकिन उस भीड़ में एक चेहरा ऐसा भी था जिस पर आँखें ना चाह कर भी बार बार ठहर रही थी........।
वो एक बार मुझे देखकर फिर से अपनी सहेलियों से बातें करने लगी और मैं भी फिर से काम मे लग गया।
अब रात को सभी को रात्रिभोज करवानें की बारी थी दोस्तों के साथ मैं भी खाना परोसने लगा।
एक बार फिर से उस से मुलाकात हो गयी, खाना परोसने के बाद मैंने कहा कुछ और चाहिए? उसने सिर हिला के मना कर दिया।
खाना खाने के बाद सभी के साथ वो भी दुल्हन के कमरे में मेहंदी लगाने चली गई। और हम यार अलबेले भी अपनी महफ़िल जमाने घर से थोड़ी दूर पानी के धारे(प्राकृतिक पानी का उदगम स्थल जहाँ से पानी को भरने की जगह बनाई रहती हैं) के पास चले गये महफ़िल जमी तो बातें चलने लगी सभी के लबों पर उसी का जिक्र था शिवाय मेरे मेरे दोस्तों को उसका नाम और पता मालूम था। मैं उनकी बातों को ध्यान से सुन रहा था सुनता भी क्युं नहीं उसका जिक्र जो हो रहा था।
मुझे भी उसका नाम पता चल गया था और यह भी की वो अपने रिश्तेदारों के साथ यहाँ आयी थी।
शराब की महफ़िल से उठने के बाद हम भी शादी वाले घर की तरफ चल दिये, कुछ खाना खाने लगे और हम मेहंदी वाले कमरे की तरफ चल दिये वहां दुल्हन को मेहंदी लगाने के बाद सभी अब एक दूसरे को मेहंदी लगाने में बैठे थे मैं भी वहाँ पहुँच कर मेहंदी लगवाने लग गया, मेहंदी तो एक बहाना था नज़रें तो चोरी चोरी चुपके चुपके उन्हें ही देख रही थी। मेहंदी की रस्म के बाद हम सभी नाचने चले गये वो भी छत से सभी को नाचते हुए देख रही थी , और हम सभी दोस्त भी उन्हें ही देख रहे थे तभी मुझे आवाज़ लगायी गयी और मुझे मेहमानों को कमरे में छोड़ने को भेजा गया सभी को थोड़ी थोड़ी दूर सुलाने को छोड़ कर जब वापस आया तब तक वो भी अपने कमरे में चली गयी थी। मैं भी दोस्तों के साथ नाचने लग गया कुछ देर बाद सभी अपने घरों को चले गए थे।
रात को सभी काम खत्म करके खाना खाया तब तक रात ज्यादा होगयी थी,शायद 1 या 2 बज चुके थे। मैं भी अपने घर चला गया जो थोड़ी दूर था।
अगली सुबह जल्दी उठकर शादी वाले घर पहुँचा सभी दोस्तों से पहले पहुंचने की थोड़ी खुशी थी शायद उन से बात हो जाये, वहाँ मेरे से पहले कुछ ही अन्य गाँव वाले थे मुझे सब को चाय पिलाने का काम मिला था और साथ में मेरे एक छोटा लड़का गिलास लिए चल रहा था सभी को चाय पिला चुके थे लेकिन अभी भी वो नहीं दिखी थी ।
मैंने उस लड़के से पूछा और जो कुछ लड़कियां थी वो कहाँ है मुझे पता नहीं और कौन हैं सभी मेहमानों को तो चाय पिला चुकें हैं, ठीक हैं मैंने कहा, हम दोनों भी चाय पीने लगे।
तभी थोड़ी देर बाद वो लड़का कहता हैं अरे अभी वो भी तो हैं ?
मैंने उत्सुकता से कहा- कौन रे?
अरे उनके साथ जिनके साथ मैं कल अंताक्षरी खेल रहा था रात में ।
वो जल्दी से कमरे की तरफ गया और पीछे से मैं भी चल दिया।
कमरे में अभी भी लगभग सभी सो रहे थे तब तक वो उन्हें जगाने लगा। मैंने उन्हें चाय पिलायी।
वहाँ मुझे वो दिखी जिसके लिये रोज सुबह 100 बातें सुन कर उठने वाला सुबह ही उठ गया था।
वो हल्के से मुस्कुराते हुए चाय का गिलास लेती हैं।
मैं भी वहीं पर बैठ कर चाय पीने लगा, थोड़ा सा उनसे बात करने का बहाना ढूंढने लगा , आपस में सभी मैं बातें कर रहा था लेकिन वो चुप थी और हमारी बातें सुन रही थी। मैं थोड़ा अपनी बातें करने लगा सच कहूँ तो इम्प्रेस करने की कोशिस,।
तब तक सब चाय पी चुके थे मुझे मजबूरी में गिलास उठा कर बाहर जाना पड़ा , सुबह के6.30 हो चुके थे में फिर कुछ काम करने लगा। लेकिन जब भी मौका मिलता उस कमरे की तरफ जरूर जा रहा था कुछ चाहिये कहता रहा लेकिन किसी ने कुछ नहीं मांगा, कोई बहाना ही नहीं मिल रहा था उनसे बात करने का। मुझे कुछ काम के लिये गांव में भेजा गया मैं बड़ी तेजी से काम खत्म करके आया जैसे मेरी ही आखरी ट्रैन छूट रही हो, जब तक वापस लौटा सभी उठ चुके थे गाँव वाले भी पहुंच गए थे। फिर दुल्हन के मंगल स्नान की रस्म पूरी हुई । एक झलक उन्हें देखना भी मेरे लिए जरूरी था लेकिन सभी को आज जैसे मेरे से ही हर काम करवाना था । शायद इतना गुस्सा कभी ना आया हो लेकिन उनके सामने अपना इम्प्रेशन तो दिखाना था मरता क्या ना करता, काम में ही सारा दिन निकल गया । शाम को बारात आ पहुँची मेहमान नवाजी में ही रात गुजर गई रस्मे होती रही लेकिन उनसे मिल का समय नही मिला । अगले दिन वो 1-2 बार दिखाई दी दूर से ही, मैं फिर दुल्हन की डोली के साथ बारात में चला गया, शायद अगले दिन वो भी वापस जा चुकी थी। और मैं वापस कॉलेज चला गया था।
लेकिन उन से फिर से मिलना था शायद यही से शुरुआत होनी थी अंजाम तो कुछ और ही होना था। समय गुजरता रहा मैंने इंजीनियरिंग आधे मैं ही छोड़ दी थी और नौकरी की तलाश में घूमता रहा समय के साथ में उसे भूल चुका था लेकिन अभी तो मुलाकात फिर से होनी थी इस सिने में दबी मुहब्बत को लफ़्ज़ों में बयाँ होना था।
कैसे आगे उन से मुलाकात हुई और क्या आगे मैं बात कर पाया था
जारी रहेंगी आगे.......
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