प्रेम और समर्पण ।।
समर्पण कर दिया खुद को तुम्हें
जो तुम करना चाहो कर लो
चाहे तो ठुकरा लो चाहे तो स्वीकार लो
कनक सा हूं श्रृंगार करो या मदहोश कर लो
।।।
कभी कभी प्रेम में जरूरी नहीं को वो सब प्राप्त हो जिसे हम चाहे।।
दूर होते हुए भी किसी के अहसास में भी वो सब होता है । जो सब पास होने पर भी किसी से नहीं होता है ।।
मैं प्रेम में हमेशा स्वार्थी रहा हूं जिसे चाहा उसे हासिल करने की कोशिश की । जब नसीब से हासिल नहीं हुई तो भोलेनाथ से हमेशा उसे पाने की प्रार्थना की ।। समय अपनी गति से चलता रहा और हम उन यादों से निकलते रहें कभी बस यूंही उन्हें सोचते समझते अपनी तन्हाइयों में खुद से ही अपनी गलतियों को गिनते । मनोरोगी बन बैठे थे किसी को बस अपना समझ कर। वो कहते है ना इश्क का रोग ऐसा रोग है जिसका कोई वैध भी उपचार नहीं कर सकता ।
बस ये ख्याल ही खुद में कुरेदते है मैं ने गलती क्या की है ?
हर समय हर वक्त हर जगह पर उनका साथ ही तो दिया था। अपनी जिंदगी को बदल दिया था एक उनके कहने से तो सिगरेट , शराब को छोड़ दिया था ।। उसके फैमिली स्टेटस को मैच करने के लिए जिसने सालों से किताबों के पन्ने ना पलटे हो उसे किताबो से प्रेम हो गया था वो हर पल उन्हें पाने के सपने को पाले एक सरकारी नौकरी के लिए सपने संजो बैठा था ताकि उन्हें कभी किसी के सामने अपनी पसंद के स्टेटस से शर्म ना आए।। उसे अपने सपनो को पूरा करना था और उसके सपनो को अपना सपना समझ कर पूरी शिद्दत से पूरा करने की कोशिश कोई और कर रहा था ।। रात को 9 बजे सोने वाला वो इंसान हर रात उनके कॉल के इंतजार में उस से पहले कभी नहीं सोया ताकि उसे जब समय हो वो अपना हाल चाल बताएं।
परीक्षाएं स्थगित होती गई समय अपनी गति से गतिमान रहा
बस उन्हें अपना बनाने की चाहत पाल कर कोई वर्षो इंतजार करता है ।।
आखिर हासिल क्या होता है
अंत में सब समाप्त हो जाता है , हिस्से क्या आता है किसी के किसी का नया घर बसता है और किसी का घर ही उजड़ जाता है । अब वो कैसे बताएं उन्हे की उनके होने ना होने का फर्क क्या पड़ता है दिल की सब से गहरी धड़कन के एहसाह को शब्दों से कैसे समझाएं। एक बारिश के पानी से प्यास बुझाने को तिसमोली (चातक पक्षी) जैसे केवल बादलों के भरोसे आसमान को ताकती है उसके लिए संसार में भरे पानी का कोई मोल नहीं होता । उसी तरह उसके ना होने से भरे पड़े इस संसार में किसी का मोल नही है।।
किसी की खुशबू जो सांसों में बसी हो , किसी के ना होने से जीवन अधूरी किताब बन जाए । उसके ना होने के अहसास से ही सारा संसार सुना हो जाए ।। उसे कैसे कहा जाए।
सुना था की समय गहरे से गहरे जख्मों को भर देता है ।
समय जख्मों को तो नही भरता है पर जख्मों के साथ जीने की आदत बना देता है ।।।
लोहे को जैसे लोहा काटता है वैसे ही एक दर्द को दूसरा दर्द भुला देता है।।
मेरे स्वार्थी से समर्पण का सफर भी कुछ यूं ही गुजरा।
दुनिया में हर इंसान अधूरा है। किसी से कभी एक ही मुलाकात में ही ये एहसाह हुआ की, ये बने ही मुझे पूर्ण करने के लिए है ।। किसी की आंखों में ऐसे खोकर देखा है, की तुम्हे उन आंखों के सिवा पूरे संसार में शून्य का एहसाह हो , अंतर्मन से आत्मा उनके आकर्षण से खिंची चली जाए , और इस अनंत ब्रह्माण्ड के सफर को उन्हें क्षणों में तय करने लगे ।। ये मन उनसे ऐसे जुड़ जाए जैसे कई कल्पों , जन्म जन्मांतर से उन्ही से मिलन की प्रतीक्षा में शरीर रूपी चोले को बदलते हुए उनकी की खोज में हो ।। ह्रदय की धड़कने तेज हों जाए शरीर एक अलग अहसास से कंपन करे जो तुम्हारे सिवा कोई और महसूस नहीं कर सके । आप केवल उन नैनो को निहारते ही अपने जीवन के हर उद्देश्य को भूल जाए और किसी शून्य(ब्लैकहोल) में समाहित होकर खुद भी शून्य हो जाए
इस एहसाह के बाद नही पता आप उनके लिए कितने स्वार्थी हो सकते है और किस हद को पार कर सकते है।
पर मै उस लम्हे से भी दूर होने के लिए खुद को कभी नहीं समझा सकता था उस क्षण उन से दूर होने के अहसास ने भी एकदम से ऐसा कर दिया था जैसे अपना सब कुछ गवां कर आप किसी निर्जन ग्रह पर हो जहां कुछ भी नही है बस एक सन्नाटा सा है । एक कदम को भी उनसे दूर जाने के लिए बढ़ा पाना शहद में डूबी मधुमक्खी की तरह था ।।
वो लम्हा हर पल के लिए हृदय में कैद हो जाता है । उन निगाहों में हमेशा डूबने के लिए , दुनिया की सारी हदें पार करने के लिए समय के सबसे सूक्ष्म हिस्से में भी ना सोचे ।।
समय के साथ पागलपन अपने चरम पर पहुंच जाता है जहां उन्हें खोने का अहसास ही रात दिन एक कर देता है जहां हर जगह बस उनकी फिक्र लेती है ओवरथिंकिंग से जब दिमाग फटने को होता है और ये हृदय किसी आघात से बस थमने वाला होता है उस समय बस भगवान का आश्रय ही रहता है और फिर भगवान से मांगते मांगते अहसास होता है जब भगवान पर इतना ही भरोसा है तो भगवान के फैसले पर विचार करने का कोई अर्थ ही नही है ।। समस्या का समाधान खुद मैं ही हूं । अगर मेरा प्रेम निश्छल और पूर्ण सत्य है तो उसे केवल मेरे साथ या दूर होने से प्रेम पर कोई असर नहीं पड़ेगा।।
मुझे किसी को पाने के लिए किसी याचक बनने की नहीं अपितु जिस प्रेम को भगवान माना है उसमें भगवान की तरह समर्पण करने की आवश्यकता है ।। भगवान से कोई मुराद मांगने पर जब ना मिले चाहे तुम लाख प्रार्थनाएं करो लाख यज्ञ करो तो खुद को भगवान के चरणों में समर्पित कर दो ।। भगवान मागने से जो नही दे सकते समर्पण में वो सब मिलेगा।।
समर्पण के बाद बस हम भगवान के हो जाते है और कोई स्वार्थ शेष नहीं रहता।। ठीक उसी प्रकार प्रेम में समर्पण करने से प्रेम सदैव बना रहता है चाहे वो हासिल हो या दूर हो खुद को समर्पित करने के बाद प्रेमी जो चाहे वो करे हम तो खुद को समर्पित कर चुके है तो अपने डर, घबराहट, गुस्सा , उन्हें खोने के अहसास इन सब से मुक्ति उसी क्षण से होती है और केवल शेष रहता है तो वो प्रेम ।।।
सत्य प्रेम।।
©️®️@शुब्बी (शैलम)
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