पश्चात्ताप भी जरूरी है
Baaduli
उस मोड़ पर बहुत देर तक रुका रहा इंतजार में की कोई आवाज़ देकर रुकवा दे।
दिमाग में विचारों की अजीब से उधेड़ बुन चल रही थी ।
दिल जहां अभी भी उम्मीद में था की उसकी कोई धड़कन तेज हों, वो कान में उनकी शहद सी मिठास लिए वाणी को सुनने के लिए आतुर थे।
वही एक उधेड़बुन ये थी कि अगर यही अपनापन होता तो कोई यूं देख कर नजरंदाज नहीं करता की यही 2 पल की मुलाकात आखरी है ।। उन दो पलों में अब तक के सब गीले सिकवे मिटा कर हमेशा के लिए अलविदा कहना है ।।
शायद कभी अब मुलाकात हो । और अगर हुई भी तो कौन किस से कैसे मुलाकात कर पाएगा और कैसे कोई नजरें मिला पाएगा ।
जिन आंखों में हमेशा प्यार भरा होता था शायद उनमें अब सूखे आंसुओ से ज्यादा कुछ ना, दर्द भले कोई लाख छुपा कर मुस्कुरा ले पर दिल से तो वो हर मरता रहेगा ।।
अंत होना जरूरी था, हर रोज धीरे धीरे मरने से एक बार में ही उस दर्द को चर्म तक ले जाओ , अंत की सीमा से अधिक जब दर्द हो तो मस्तिष्क , दर्द को समझना बंद कर देता है।।
उस चेहरे के दीदार के लिए जिसके सिवा कोई और ही नजर ना आए । उन धड़कनों की आहट को जिन से मधुर संगीत कुछ ना लगे ।
उस आवाज को सुनने को जिस से सारी प्रकृति की साज सी लगे ।
उन निगाहों से जिन में सारा ब्रह्माण्ड एक पल में समा जाए।
भोरे की पहली किरण से जो धड़कनों की गति, हर पल उन्हें देखने की कल्पना मात्र से प्रकाश की गति से तीव्र हो सांझ के अंधेरे के साथ साथ वो ही धड़कने ,किसी बुझते दीपक की लौ के जैसे, बुझने को बस अंतिम पलों को जिन रही थी ।
दिन भर के बस उनके दीदार को कल्पना से ही सुध बुध गवाएं किसी पागल हाथी की तरह, बिना कुछ समझे बस मदमस्त सा फिरता रहा , उनकी बस उसी बेरुखी से होश से बेहोश या बेहोशी से होश ठिकाने आगया।।
जरूरी होता है कुछ गीले सिकवे , कुछ गलतियां , कुछ पश्चात्ताप भी जो दर्द में जीने की आदत में दिल को दर्द से हमेशा भरे रहते है।।
कुछ कहानियां आधी अधूरी ही खत्म करना सही रहता है चाहे वह किताबों में कल्पना मात्र हो या असल जिंदगी की सत्य कथा ।।
सांसों के बोझों तले दबी है जिंदगी
डोर खींचते खींचते गुजर ही जायेगी ये जिंदगी ।।
©®@शुब्बी
शुभम भोले भण्डारी (शैलम)
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