खुदयां मसाण
पर्सी शहर बटीं औंण का बाद बटीं भैजी कु बुखार अर हाथ खोटों पीड़ा कम नि छे होणी दारू अर दवाई भी करायली छे पर भैजी अभी भी परेशान छा।
बड़ा समय का बाद त भैजी आपरा घौर आयी छा परदेश बटीं पर तबियत रोज तनी ही खराब छे । पहली सोची गाड़ी का सफर का वजह सी होली फिर सोची मौसम ही च त डॉक्टर सी दवाई लेई देंदा पर भैजी जु जरा भी हरकु-फरुकु !!
सभी राजी खुशी पुछण यानी खबर कं आया छा अर औं भी लगया छा ।।
केन बोली देवता कु दोष त नी होलु केन बोली छले त नि होलु एक बार उचाणु करि दया क्या पता ठीक ह्वे जो।
ब्याखुनि बगत पस्वा जी बुलायी गेंन ।
द्यौ धुपणु करए गयी ।
सेरा परिवार वाला बैठ्या छा त द्वी चार गौं फुना भी छा बगल मा भैजी का नौना नौनी भी बैठ्या छा अर उ आश्चर्य मा छा यू होणु क्या च ।।
थोड़ी देर मा पश्वा जी का हाथ खोटा थतराण बैठींन मतलब देवता औंण लगी ।।
त भैजी का बाल-बच्चोंन सोची समझी ये बुढया तें जाडू लगी पर सभी हाथ किले जोड़ना छं ।
तभी पस्वा जी वा............ की जोरदार आवाज का साथ मा थाली पर सी कुछ चौल का दाना हाथ मा लीक उठी जांदीन त भैजी का बच्चा चचले गें यू क्या ह्वे ।।
पस्वा जी आपरी बिरत पूरी कं का बाद भैजी पर ताड़ा मारदीन अर बोल्दीन अरे मेरा मैती यु त थोड़ा मसाण भिडयू छो रे अर अर तू एक एकहडया टिकडु वी ही दिशा मा चले दे शाम कु अर बाकी मेरा खातिर जमा रो।
चौल का दाना सभु तें दे तें पस्वा जी घरे जांदीन सभी आपस मा आपरी छविं बातू मा लगी जांदीन पर बच्चा हैरान छा यू मसाण अर टिकडु क्या ह्वे ।।
खोल्यां सी द्वी भै-बैणा आख़िर दादी सी पुछदिन दादी मशाण क्या ह्वे अर टिकडु क्या ह्वे दादी बोल्दी बाबा मसाण भूत पिशाच तें बोल्दीन पर सभी मशाण बुरा भूत नि होंदीन क्वी भला होंदीन ।। यी जन गदरा फूंन जन कभी छलये जा तब या कभी क्वी कुछ खिचड़ी टिकडु खाण कु भुखा आयी जांदीन दगड़ा मा।
या जन गौं की नोनियों का दगड़ा मा ब्यो का बाद गाडि कु मसाण चली जांदू जु बाद मा जल छाया का रूप मा पूजण पड़दु बाखरा या मुर्गा मा ।।
बखरा या मुर्गा मा मतलब दादी ?
ब्बा रात मा पूजा का बाद छंछर या मंगल कु या औंसी की रात कु पूजा होंदी अर बखरा या मुर्गा की बलि दीये जांदी वी तरफ दिशा कु जी तरफ कु मसाण होंदु अर बाकी शिकार दगड़ा मा गया गौं का मनखी खानदीन वखि सुबेर रात ब्याण सी पैली अर छोटा बच्चा अर जनानी नि खानदिन कभी यी शिकार अर ना वी जगह सी कखि और ली जांदीन यी शिकार तें।
अच्छा दादी अर मसाण सभी बेकार ही होंदीन क्या खाण वाला।
ना लाटा ना मसाण देवता भी होंन्दू जु अभी पस्वा जी छा उ मसाण देवता का ही छा ।।
बेटा मसाण भी आयी जांदीन कभी हमारा दगड़ा भूल्या-भटक्या भूखी तीसी का अर जन हमारा पहाड़ मा हमारा देवी देवतों कु पूजा भोग की परम्परा चा तनी दगडी मा ले लपेटों अर भूत मसाण की भी चा यी भी हम सी जुड़या छन जन कि भी डाली का सभी फल मीठा नि होंदीन तनी यी भी हमारी संस्कृति का खट्टा कसैला फल छं जु की हमारी संस्कृति सी पैली सी लिकर अंत तक दगडी रौला।। यी भी हमारा ही अभिन्न अंग छं।।
बात का साथ मा भैजी पर लग्या मसाण कु खिचड़ी अर टिकडु का दगड़ा मा खारू एक पुराणा रिंगाली का छिपरा मा रखी गौं का भैजी पस्वा जी का बताया दिशा बटा ली चली जांदीन ।।
कुछ समय का पश्चात भैजी तें भी आराम मिल जांदू थोड़ा ।।
बच्चा भी आज नई जानकारी सी थोड़ा डरया अर थोड़ा उत्साहित छा।।
""""जरा कभी अपरा पहाड़ का अलग रंग भी देख्या ।।
गाड़ भ्योल का मसाण लगोणों जरा उत्तराखंड आया।।""""
जन देवता हमारी जान छं पहाड़ों की शान छं।।
तनी हमकु मसाण भी खुदया छं जरा संस्कृति का दगड़ा यूँ भी बचेये दय्या।।"""""
#शुब्बी
#बाड़ूली_ब्लॉग
@ShUb_Bi
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