खत नहीं खता हो गयी ।।।

ख़त नहीं ख़ता हो गयी

वक़्त के लम्हों को समेट कर अपने अल्फाजों में
एक कागज के टुकड़े पर डुबो प्रेम की स्याही में
कुमुदिनी के अहसास सा वो पल पल हृदय को लुभा गयी।।
लिखा क्या एक जज्बात खत नहीं खता हो गयी ।।।

युगों के प्रेम की परिभाषा को आयाम देने का
मचलती समंदर सी लहरों को विश्राम देने का
दर्द और अपनेपन की कहानी क्या क्या कर गयी।
सच क्या लिखी कलम खत नहीं खता हो गयी ।।।

समेट कर उन चाँदनी रात के सितारों को
चुरा रवि से भोर की  सतरंगी  किरणों को
निर्मलता उस सरिता की तेरे चेहरे में बस गयी।।
समेटा क्या ये तेरे दामन में खत नहीं खता हो गयी ।।।

Shubbi
©baaduli

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