चाहत
कुछ पाना बाकी रह गया किसी को मुस्कुराना बाकी रह गया ।
कुछ सपने अधूरे रहेंगे
कुछ के ख़्वाब न रहेंगे।।
बेसक सपने पूरे ना कर सका जो आंखों ने सँजोये थे ।
कुछ के अंकुर उग आये , कुछ अभी धरा पर बस बोये थे।।
नहीं तुम्हे मैं कभी बिसरा हूँ ना तुम मुझे भुलाना ।।
नहीं चाहत उदासी कि, पागल इक था सोच कर मुस्कुराना ।।
कुछ से सीख कर आगे बढ़ा था कुछ को सीखला जाऊँगा।।
बसाया था किसी को सीने में अपने किसी के दिल में मैं भी बस जाऊँगा।।
मौत का क्या इक दिन सब को आनी हैं ।
ये तो रीत हैं दुनियां की एक बार सब को निभानी हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें