भूली बिसरी गयी अपर बार त्यौहार ना पंचमी याद आंदि ना मकरेणि गंगा स्नान कु जांदी । ना बग्वाली का भेला याद छंन ना तांदी झुमेलों । ना अब गुलाबन्द ना आपरी थौल मेलु की याद गौला की हंसुली ना हातियों की धगुली । ना याद चा शिव कु मैती रोण कु ना याद चा नन्दा की धियाण होण कु ना याद चा चैत का फुलारी कु ना याद चा ब्यो मा की मांगली कु। ना अब गौं मा रामलीला होंदी ना अब पण्डों का पवाडा लग्दिन। ना नरसिंग अब दोष लगदु ना नगर्जा अब गौं मा नाचदु।। ना माधो भण्डारी अब बीर भड़ रे ना जीतू बगड़वाल अब बाँसुरिया रे ना घसेरी अब गीतु भौंण पुरेन्दिन ना घुघुती हिलांश डालियों बासदन ना तीलू रौतेली जणि क्वी बाला ह्वे ना रामी जणि क्वी नारी ह्वे ५२ गढ़ भी अब सुनपट विरान छंन घौर कुड़ियों मा मूसा बिराला भी नि छंन ना ग्वेरु कु बाँसुरी सुणेन्दी ना हल्या कु हलकरु भी नि चित्यदु ना दे-दादी की कथा-कहानी रे ना बाटा-घाटा भुत भेरू रें।। ना औजी अब बारू त्यौहारु पर ढोल बजोंदीन ना क्वी अब दाना-स्याणों मुख लगोंदीन ।। ना गढ़वाली भाषा बोली समझ औंदी ।। ना हम तें अब गौं मुल्के सुध-बुध रौंदी।। अरे औंदी किले नि याद ...