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अक्टूबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आज़माया तूने

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जानता हूँ बहाने प्यार के आज़माया  मेरी दोस्ती को तूने प्यार के अफ़साने बहुत हैं पर आज एक दोस्त को रुलाया तूने।।

चाहत

कुछ पाना बाकी रह गया किसी को मुस्कुराना बाकी रह गया । कुछ सपने अधूरे रहेंगे कुछ के ख़्वाब न रहेंगे।। बेसक सपने पूरे ना कर सका जो आंखों ने सँजोये थे । कुछ के अंकुर उग आये , कुछ अभ...

मौत

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मन उदास हैं आंखे छलक रहीं हैं। कारण कुछ नहीं फिर भी अजीब सा दर्द हैं लगता हैं अंत का यही आरम्भ हैं । अंत करीब हैं। जिंदगी ना सही अपनी पसंद की शुभी मौत शायराना हैं मौत शायराना ह...

तुझे पाने की

नहीं तम्मना चाँद या सितारों को पाने की। नहीं कोई हसरत मुरझाए फूलों को खिलाने की। ओ साथी  हर कदम तेरा मेरा साथ हों बस चाहत हैं तेरे मेरे एक हो जाने की।।

द्वी घड़ी

खेल निरालु च वक़्त कु शुब्बी कभी द्वी घड़ी नि होंद क्वी गैल।। कभी दगड होंद भी नि ह्वे मेल।।। www.baaduli.blogspot.co.in

घौर बौडी जा

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भूली बिसरी गयी अपर बार त्यौहार ना पंचमी याद आंदि ना मकरेणि गंगा स्नान कु जांदी । ना बग्वाली का भेला याद छंन ना तांदी झुमेलों । ना अब गुलाबन्द ना आपरी थौल मेलु की याद गौला की हंसुली ना हातियों की धगुली । ना याद चा शिव कु मैती रोण कु ना याद चा नन्दा की धियाण होण कु ना याद चा चैत का फुलारी कु ना याद चा ब्यो मा की मांगली कु। ना अब गौं मा रामलीला होंदी ना अब पण्डों का पवाडा लग्दिन। ना नरसिंग अब दोष लगदु ना नगर्जा अब गौं मा नाचदु।। ना माधो भण्डारी अब बीर भड़ रे ना जीतू बगड़वाल अब बाँसुरिया रे ना घसेरी अब गीतु भौंण पुरेन्दिन ना घुघुती हिलांश डालियों बासदन ना तीलू रौतेली जणि क्वी बाला ह्वे ना रामी जणि क्वी नारी ह्वे ५२ गढ़ भी अब सुनपट विरान छंन घौर कुड़ियों मा मूसा बिराला भी नि छंन ना ग्वेरु कु बाँसुरी सुणेन्दी ना हल्या कु हलकरु भी नि चित्यदु ना दे-दादी की कथा-कहानी रे ना बाटा-घाटा भुत भेरू रें।। ना औजी अब बारू त्यौहारु पर ढोल बजोंदीन ना क्वी अब दाना-स्याणों मुख लगोंदीन ।। ना गढ़वाली भाषा बोली समझ औंदी ।। ना हम तें अब गौं मुल्के सुध-बुध रौंदी।। अरे औंदी किले नि याद ...

फौजी दगड़िया भाग-२ प्रोमो

बहुत बहुत आभार आपका इतग्या प्यार का वास्ता। सदा आपरु प्रेम ईनी बनायीं रख्या। फौजी दगड़िया भाग-2 पूर्ण जल्दी ही आपका मध्य होलु तब तक इंतजार करा जरा सी अर हाँ बिसरी ना जाया तब त...

कैसे

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लाचारी होती हैं बहुत सी तुम्हें क्या क्या बतायें।। कितनी दफा जख्मी हुआ ये दिल कैसे समझायें।।

रूड़ीया रुड़ी Bamboo weaver

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रूड़ीया या रुड़ी Bamboo weaver रुड़ीया ये शब्द सुणि कुछ याद भी आयी या  कुछ भी याद नि आयी। अरे हाँ याद कन करि औंण हम त अपरा गौं गुठयार छोड़ी ते भेर बसी ते शहरी बणी गया बल ।। बोलनक ते उ क्या बोल्द...

इंतज़ार

बस जिंदगी जी रहे हैं मौत से आंखमिचौली कर के किस मोड़ पर मिल जाये साथी इस जिंदगी की तब तक बस इंतज़ार में वक़्त से लड़ रहे हैं।

गढ़ प्रतिभा खोज कार्यक्रम नियम व शर्तें

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माँ सुरकण्डा प्रोडक्शन ""गढ़ प्रतिभा खोज कार्यक्रम"" नियम व शर्तें । 1.आपकी सामग्री सुध एवम सरल होनी चाहिये। 2.आपकी जो भी वीडियो या ऑडियो होगी उसे हमारे यूट्यूब चैनल से अपलोड क...

तुम

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हम तुम्हें क्या बतायें तुम में क्या - क्या बात हैं तुम से दिल में शायरी हैं इश्क़ की सौगात हैं

एक आधी अधूरी कहानी भाग -४

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आधी अधूरी कहानी भाग -४ बस अब मुझे यही सुनना था आज वो कहना क्या चाहती हैं अगर हाँ कह दिया तो मुझे सब कुछ मिल जाएगा और उसे बता भी दूँगा की जल्दी ही उस से मिलने आ रहा हूँ। अगर ना कहा तो ?? ना तो वो कह ही नहीं सकती मुझे पता हैं ना बस मन मे यही ख्याल चल रहे थे। ना जाने उसी पल मैने कितने सपने बुन लिये थे। अचानक उसकी आवाज़ से मेरी चुप्पी और ख्याल दोनों टूटे क्या हुआ चुप क्यों हो। अरे नहीं तुम कुछ कह रही थी तो ध्यान से सुन रहा था लेकिन तुमने कुछ कहा ही नहीं। अरे रहने दो कुछ नहीं हैं। अरे यार बोलो ना तुम अपना नहीं समझती हो ना? आज ना घर पर मेरी शादी की बात चल रही थीं । लड़का देखने आने वाला हैं। मेरे सारे सपने अचानक से टूट गए थे। आँखे नम सी हो गयी थी गला रुआंसा हो गया था। फिर भी मैने पूछा तो तुम ने क्या कहा   । मना क्यों नहीं किया। कब तक मना करूँगी यार । तुम तो जानतें हो ना पहाड़ में लड़की जवान बाद में होती हैं और शादी के लिये सभी लड़का पहले ढूंढने लगते हैं। और तुम क्यों रो रहे हो ? अरे कौन रों रहा हैं मैने कहा? लेकिन शायद उस बनावटी आवाज़ में वो दिल का दर्द भी समझ रही थी । म...

आधी अधूरी कहानी भाग -३

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आधी अधूरी कहानी भाग 3 आज तक इस क़िस्मत ने कई बार धोखा दिया था। लेकिन आज शायद उम्मीद से लाख गुना बढ़ कर दिया था। मैंने कुछ देर तक उसके ही चेहरे को निहारा था यकीनन वो मुझे बहुत खूबसूरत लग रही थी अब और लगना भी लाजमी था। मुझे उम्मीद नहीं थी तुम मुझ से कभी बात भी करोगी और मुझे मिलोगी। मेरे पहले शब्द यही थे। क्यों तुम्हें मैं इतनी बुरी और घमंडी लगती हूँ? उसने कहा अरे...नहीं।।।। मैं....... तब तक वो बोली छोड़ो भी तुम ये बताओ कैसे हो ? कहाँ जॉब कर रहे हो? अब तो बहुत ही अच्छा हूँ देख ही रही हो औऱ जॉब तो बस आज यहाँ कल कहाँ? एक एक शब्द इतने तोल मोल के बोलना चाहता था कि ... लेकिन शायद दिल दिमाग और जबान तीनों अलग अलग ही काम कर रहे थे सच में मेरे बस में नहीं थे। बस बातें शुरू हुई और अब खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी वर्षों का प्यासा था जिस एक मुलाकात को जिस एक आवाज़ को वो आज अचानक से सावन की वर्षा बन कर बरस रही थी। उसकी पढ़ाई भी अब पूरी हो गयी थी। आगे डॉक्टर बनने का सपना था उसका .... बस रुकी कुछ और सवारी बस में सवार हुई। एक बुजुर्ग महिला भी बस में आयी थी और मेरी तरफ सीट की उम्मीद से देख रह...