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फुलदेई लोकपर्व #फुलदेई #लोकपर्व

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फुलारी फूल देई क्षमा देई पावन पर्व की बहुत-बहुत बधाइयां एवं हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏💐 फूलदेई भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक स्थानीय त्यौहार है, जो चैत्र माह के आगमन पर मनाया जाता है। सम्पूर्ण उत्तराखंड में इस चैत्र महीने के प्रारम्भ होते ही अनेक पुष्प खिल जाते हैं, जिनमें फ्यूंली, लाई, ग्वीर्याल, किनगोड़, हिसर, बुराँस आदि प्रमुख हैं । चैत्र की पहली गते से छोटे-छोटे बच्चे हाथों में कैंणी (बारीक बांस की) कविलास अर्थात शिव के कैलाश में सर्वप्रथम सतयुग में पुष्प की पूजा और महत्व का वर्णन सुनने को मिलता है. पुराणों में वर्णित है कि शिव शीत काल में अपनी तपस्या में लीन थे ऋतू परिवर्तन के कई बर्ष बीत गए लेकिन शिव की तंद्रा नहीं टूटी. माँ पार्वती ही नहीं बल्कि नंदी शिव गण व संसार में कई बर्ष शिव के तंद्रालीन होने से बेमौसमी हो गये. आखिर माँ पार्वती ने ही युक्ति निकाली. कविलास में सर्वप्रथम फ्योली के पीले फूल खिलने के कारण सभी शिव गणों को पीताम्बरी जामा पहनाकर उन्हें अबोध बच्चों का स्वरुप दे दिया. फिर सभी से कहा कि वह देवक्यारियों से ऐसे पुष्प चुन लायें जिनकी खुशबू पूरे कैलाश को महका...

आज सुपिन्यों मा देखी गौ की होली ।।

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आज सुपिन्यों मा देखी गौ की होली  राते होलिका दहन दिन की छरोली बौडी काकी का मुख कु गुलाल  भैजी बौजी की मुखुड़ी पीली लाल स्यालि ते रंगनो जीजा का मन कु उलार फूलों सी फुल्यारी या स्वाणी छरोलि ।। आज सुपिन्यों मा देखी गौ की होली  राते होलिका दहन दिन की छरोली दूर डांडियों मा लाल बुरास भी दमकनु छो पीली फ्योली का मन ते भी रिझोनू छो बसंत की बयार मा प्यार का रंग उड़ोनू छो रंगो का बहार की या छरोली।। आज सुपिन्यों मा देखी गौ की होली  राते होलिका दहन दिन की छरोली छोटा ग्वैर भी आज रंगमत होया छा  गोरु का मोल मा लतपत बनया छा वल्या पल्या खोला फुरपत लगया छा छोटा दाना ज्वानो की या छरोली आज सुपिन्यों मा देखी गौ की होली  राते होलिका दहन दिन की छरोली बैख बांद भी गीतू भौंन मा झूमना दयूर भौजी ते रंगनो ते तरसना ढोल की थाप मा अहा सभी भलु नाचना बसंत का गीतू की या छरोली आज सुपिन्यों मा देखी गौ की होली  राते होलिका दहन दिन की छरोली सुपिन्यु टूटी ग्यायी मेरु मोटरू का शोर सी गौ अब दूर ह्वेगि कटी पतंग का डोर सी यादों की पीड़ा मा नाचदू रैगे मन बोण का मोर सी बस अब पीड़ा ही द...

मेरा कसूर

मेरा कसूर बस इतना था खुद से ज्यादा उसको प्यार किया था  लाख बार भरोसा टूटा लेकिन फिर भी उस पर भरोसा किया था ।। धोखे मिले थे हर बार मगर सब से अलग तुम्हे माना था ।। दौलत शोहरत के आगे मेरा प्यार तुमने कहां पहचाना था ।। उस मोड़ पर खड़ा कर के मुझे छोड़ दिया तुमने  जहां सब कुछ लुटा कर भी तुम्हे गवां दिया हमने मोहब्बत की हर हद को पार कर के जाना हैं जब तक आखिरी सांस होगी तुझमें ही जीना हैं ।।। तुम तोलना कभी दौलत से मोहब्बत मेरी  हर वक्त कीमत ऊंची होगी प्यार की मेरी ।, क्या हुआ दुनियां में जो तुम कहने को साथ मेरे ना रहोगे  आखिरी सांस तक देखना मेरी सांसों में सिर्फ तुम बसे रहोगे।। ये देह तो बेशक दूर हो जायेगी तुम से आत्मा का क्या करोगे जन्मों का रिश्ता है तुम से कहो ना कब हमें खुद से दूर रखोगे

तुम्हें भुला रहा हूं, Journey That Never End's!

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तुम्हें भुला रहा हूं, Journey That Never End's! वो आहिस्ता आहिस्ता सी कानों में गूंजती संगीत की धुन , जगजीत सिंह की दिल को छूने वाली मधुर आवाज, दबे होंठो में  सुलगता गांजा , हाथों में शराब  , आंखो में बसाई किसी की तस्वीर को आंसुओं से सींचते हुए ।। दिल दिमाग़ में तुम्हे ही सोचते , बस किसी उधेड़ बुन में खुद से बात करते कभी होठों पर तुम्हारी प्यारी मुस्कान से हसीं होती अगले ही पल तुम से दूर होने की उदासी,  अपनी ही यादों में खोया मैं अब भी याद करता हूं हर पल  तुम्हें  की काश तुम साथ होती अभी तो मैं यूं ना होता ।।। ना मौन सा ये चांद रातों को अकेलेपन का अहसास करवाता  , ना ये नींद को दुश्मन अपना बना लेते ।। धीमे धीमे तुम्हारी यादों से खुद को दूर कर रहा तुम्हे भुलाने को भी तुम्हे याद कर रहा हूं।।

सुनो ना, मैं तुम्हे प्रीत कहूं ?

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सुनो ना,   मैं तुम्हे प्रीत कहूं तुम्हे कोई ऐतराज तो नही ।। तुम में जहां अपना देखूं तुम नाराज़ तो नही ।। डूब कर इन निगाहों में ,लहराती जुल्फों को सवारूं,  ख्वाब संजोने सुरु करु मिट्टी की गुलक में अपनी एक झटके में तोड़ने का कोई इरादा तो नहीं।। बाहों का सहारा ले थाम तेरा हाथ चलूं भीड़ में  सफर का हम सफ़र तुम्हे चुन लूं तुम्हे दुनिया की परवाह तो नहीं।। कजरारी अंखियों में डूब कर , भीगे होंठो पर रख उंगली  माथे को तुम्हारे चूम लूं तुम्हे मेरा होने की लज्जा तो नही (तुम्हे मेरा होने में संकोच तो नही) सुनो ना,   मैं तुम्हे प्रीत कहूं तुम्हे कहीं अस्वीकार तो नही ।।

सहम सा गया वक्त का पहिया जैसे

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आहत हैं मेरी भावनाएं इस मर्म परिदृश्य को देख कर सहम सा गया वक्त का पहिया जैसे तीव्र मन की गति सी थी जिंदगी इस महामारी से ठहर सी गयी आभा जैसे सुना था कहीं या पढ़ा था कहीं, हैं परिवर्तन ही प्रकृति का नियम  जूझ रही जब जिंदगी मौत से क्या तेरा मजहब क्या बड़ा मेरा धर्म जो जीने की राह दिखाये जो नव आशा का अंकुर उगाये  डोलती सागर की लहरों में जो कस्ती जीवन की पार कराये ढूंढ उस जीवन की किरण को ढूंढे अपनी जननी को जैसे सहम सा गया वक्त का पहिया जैसे अनंत अंतरिक्ष की खोज में इस मूल धरा को भूल गये  उड़ने चले थे आसमां में बेतहासा आज दलदल में धंस गये करते रहे बेघर उन बेज़ुबानों को खुद का घर जला गये जला मन की बुराई को इस अग्नि में तू घृत के जैसे सहम सा गया वक्त का पहिया जैसे कोई ना कोई तो जाग रहा हैं इस विकट घोर अंधेरी रातों पर  दिन रात एक करके जो लगे हैं तेरे लिए तू उनपर एक उपकार कर  समेट ले खुद को घर में अपने शिशु माँ की गोद में जैसे सहम सा गया वक्त का पहिया जैसे तुझे ही ख़ुद लड़ना हैं तुझे ही खुद विजय श्री होना हैं तुझे ही फ़िर एक दिन इस देश को विश्व गुरु बनाना हैं ख़ुद सं...

तेरा हूँ और तेरा हो कर रहना चाहता हूँ ।।

तेरा हूँ और तेरा हो के रहना चाहता हुँ।। ना चाँद सा चेहरा चाहता हूँ ।।।  ना चांदी सा रूप चाहता हूँ ।।। ना मृग तृष्णा कस्तूरी की चाहता हूँ  ना सरगम सुरों का चाहता हूँ ।।। ना महक फूलों की चाहता हूँ ।। ना भवँरे से रस को चाहता हूँ ।।। ना मिठास शहद की चाहता हूँ ।।। ना वाणी कोयल की चाहता हूँ ।।। ना चाल मोरनी की  चाहता हूँ ।।। ना रंग मोती का चाहता हूँ ।।। ना तेरा रूप , रंग , यौवन की चाह रखता हूँ।।। मैं तो बस हंस के जोड़े से तेरा साथ चाहता हूँ ।।। शुब्बी