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लिखा क्या एक जज़्बात ख़त नहीं ख़ता हो गयी ।।।

लिखा क्या एक जज़्बात ख़त नहीं ख़ता हो गयी ।।। आज समेट कर उन सभी लम्हों को पिरोया मैने इश्क़ के धागे में प्रेम की स्याही से एक कोरे कागज पर लिख दिये जज़्बात जो अनकहे से थे।। कहाँ से लिखूँ क्या सोच कर लिखुँ तेरी तारीफ किस किस से करूँ चाँद से करता तो अमावस का भय था । फूलों से करता तो  भँवरे का डर था। रवि से कैसे करता तपिस उस में थीं भोर से करता संध्या भी तेरी ही थी।। संगीत से करता तो करुणा भी होती रति से करता तो वासना भी होती। शब्दों से करता तो कठोरता भी होती नदी से करता तो चंचलता भी होती।। राधा से करता तो श्याम में न था ।। सीता से करता तो राम में न था।। सोचा बस एक ख़ता कर देता हूँ । आज इन ख्यालों को हक़ीक़त कर ही देता हूँ कह देता हूँ साफ साफ तुझ से हृदय की पुकार को , लिख देता हूँ एक पन्ने पर दिल की बातों को कहाँ से सुरु करूँ ये ख़्याल अब भी वैसा ही था। जब तुम मिले थे जो हाल तब इस दिल का था। सब कुछ हो तुम अब मेरी बस इतना सा मुझे लिखना था। सांसो में बस गए हो अब तुम इतना सा ही तो कहना था।। शब्द ना थे ये बयां करने को या मैं तेरी यादों में इतना खोया था। रात से सुबह हो गयी...

खत नहीं खता हो गयी ।।।

ख़त नहीं ख़ता हो गयी वक़्त के लम्हों को समेट कर अपने अल्फाजों में एक कागज के टुकड़े पर डुबो प्रेम की स्याही में कुमुदिनी के अहसास सा वो पल पल हृदय को लुभा गयी।। लिखा क्या एक जज्बा...

श्री घण्टाकर्ण गाथा २

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जय श्री घण्टाकर्ण देवता जब चमोली नामक व्यक्ति द्वारा देवता के लिंग पर कुल्हाड़ी से प्रहार किया जाता है तब देवता का लिंग त्रि खण्ड (3 हिस्सों में) हो जाता है पहला खण्ड़ जहाँ बडि...

वा मेरी मायादार होली कखि दूर डांडियों मा।।

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सोचणु छो जेकाँ बारामा बैठी यखुली ख़यालु मा रोज जु आन्दी मेरा दगडी।। छपेगी होलु जन्म जन्मो कु जैकु नौ जिकुड़ी मा वा मेरी मायादार होली कखि दूर डांडियों मा।। वा घास कु जांदी हो...

श्री घण्टाकर्ण गाथा - १

जै घंडियाल देवता घंटाकर्ण देवता जो शायद उत्तराखंड के कण कण में कोई ही ऐसा स्थान हो जहाँ नहीं अवतरित हुए हो ।। हमारे उत्तराखंड ही नहीं अपितु देश विदेश में भी श्री घंटाकर्ण ...

गाढ़ कु मसाण सी ।

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माणी तुम स्वाणी डांडी काठियों की आच्छरी सी मैं आंदा जान्दो डरोण वलु गाढ़ कु मसाण सी । होली तुम कुथ्ज्ञली गात वाली रति मैं आज भी रूखा डाँड़ी कंठियों कु प्राण सी।। बुराँस सी होठड़ी तेरी जखझोर गात गेंणों सी चा होळी तुम फ्योंली सी चटकली भोरों सी मैं कु आज भी पराग प्यारु चा।। होला तुम जौंन(जूंन चाँद) जुन्याली रात का कफु जख मायादार तें बुलानु चा। मैं औंसी रात सी अंधयरु आज भी एकरात जैकी बग्वाली की रौंस चा।। होला तुम कोंगला फुलारियों का फूल सी मैं रुढ़ियों मा ज्योठ का तड़पडा घाम सी ।। होली तुम मा रसीली मिठास हिसर सी मैं आज भी कुठेन्दू जन बिष अयांर सी ।। होला तुम चौंल देवतों माथु थर्पेण वाला मैं चेडों(मच्छर) की धुयाली का खारू सी।। होला तुम डांडी सारी मोल्यार बसंत का मैं बोण खाल की रूड़ी की बडांग सी ।। होली तुमारी मुखुड़ी ह्युं सी गोरी कमरी मुळेन्दी डाली पर लगुली सी।। ध्धयोन्दिन रिक बांदरु सी मैकू लोग़ हर मोर छाजा बासु तेरु घेन्दुडी सी ।।। Shub bi 

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