गाढ़ कु मसाण सी ।

माणी तुम स्वाणी डांडी काठियों की आच्छरी सी
मैं आंदा जान्दो डरोण वलु गाढ़ कु मसाण सी ।
होली तुम कुथ्ज्ञली गात वाली रति
मैं आज भी रूखा डाँड़ी कंठियों कु प्राण सी।।

बुराँस सी होठड़ी तेरी जखझोर गात गेंणों सी चा
होळी तुम फ्योंली सी चटकली
भोरों सी मैं कु आज भी पराग प्यारु चा।।

होला तुम जौंन(जूंन चाँद) जुन्याली रात का
कफु जख मायादार तें बुलानु चा।

मैं औंसी रात सी अंधयरु आज भी
एकरात जैकी बग्वाली की रौंस चा।।

होला तुम कोंगला फुलारियों का फूल सी
मैं रुढ़ियों मा ज्योठ का तड़पडा घाम सी ।।

होली तुम मा रसीली मिठास हिसर सी
मैं आज भी कुठेन्दू जन बिष अयांर सी ।।

होला तुम चौंल देवतों माथु थर्पेण वाला

मैं चेडों(मच्छर) की धुयाली का खारू सी।।

होला तुम डांडी सारी मोल्यार बसंत का
मैं बोण खाल की रूड़ी की बडांग सी ।।

होली तुमारी मुखुड़ी ह्युं सी गोरी
कमरी मुळेन्दी डाली पर लगुली सी।।

ध्धयोन्दिन रिक बांदरु सी मैकू लोग़
हर मोर छाजा बासु तेरु घेन्दुडी सी ।।।

Shub bi 

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