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Someday, you’ll find yourself — किसी रोज ढूंढना तुम खुद को

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अब किसी रोज ढूंढना तुम खुद को मेरी कविता मेरे किस्सों में तब सूरत देखना अपनी मेरे दिल के हर हिस्सों में ।। अनकही सी बहुत बातें रह गई है अब भी बाकी दर्द , प्रेम सब खुद में ही समेटा है तुम सब हासिल हो ताकि मैं चकोर सा सदैव तुम्हें निहारु चांदनी रात में तुम तारों में अकेले चमक सको एक रोशनी बन जहां की ।।। मेरे मोह , मेरे लगाव को तुम बेशक अनदेखा करना मेरे लिखे हर शब्द में खुद को तोल कर देखना । प्रेम में तुम कान्हा सी छवि बन कर मुझे खुद में राधा जानकर , मेरे हृदय में तेरी तस्वीर देखना।। @शुब्बी  “translated by author”  Someday, you’ll find yourself — In my poems, in my tales untold, And when you do, look closely — You’ll see your face in every fold of my soul. So many words remain unsaid, Love and pain — I’ve kept them all inside, So that you could have it all — Every part of me, without divide. Like the Chakor forever gazing at the moon, I’ll keep watching you in silver light, So you may shine among the stars, A glow that makes the world bright. Ignore my ...

तुम

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अजीब से किरदार होते है ना अक्सर किसी ना किसी कहानी में,  तुम मैं या वो सब , आप हम या अपने से कुछ पराए कुछ किरदार को तुम जीलो कुछ किरदार हम निभा जाए दुःख में कर आलिंगन बनो तुम  मेरे , सुख में तेरे  दूर हम हो जाएं।।। अधरों  से ना कहना तुम कभी निगाहों से बतलाना रख मौन व्रत सा भेद मन का , मन को कुछ यूं बहलाना बन अजनबी रिश्ते चिरकाल तक हम कुछ यूं निभाए  सादगी में समेटना चांदनी को , रात का उजियारा हो जाए।। तुम प्रेम की देवी सा रूप धरो , मैं प्रलय का देवता बन जाऊं  तुम अश्रु बनो चक्षु का , मैं नैन का बैचेन नीर कहलाऊं  लवण सा रूप समेटे, मृदु से इस यौवन में तुम रहो पतित गंगा, भाव मेरा सागर सा कहलाए।।। #shubbi #baaduli 

कभी लिखूंगा ना तुम्हें

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हां लिखूंगा ना,  कभी दास्तां अपनी, जिसमें तुम और बस तुम हो ।। मैं हर पल रहूं , साथ तेरे साया बनकर पर , उसमें  मैं - मैं ना होकर, उसमें  मैं तुम रहूं,  कहां मैं सोचूं तुम्हें चांद की उन परिधियों से , कहां धरा को अस्तित्व से जुदा कर सकूं। शांत गुमशुदा या मौन होना बस एक भ्रम मात्र है, तेरे आलिंगन से बढ़ कर कुछ यथार्थ नहीं।। प्रेम की प्रकाष्ठा के गहरे सागर में गोते लगाना हो या फिर मदमस्त पवन के वेग के अनुकूल बहना । तुम से ही तो सब है आदि अनंत के व्योम में शून्य के आधार सा।।। मुझे अबोध से मुझे बोध होने तक , मेरे उग्र व्यवहार से मेरे मूक होने तक , मेरे महत्वाकांक्षी से मेरे विमुख होने तक , मेरे लालची से संतोषी होने तक । इस जीवन के हर हिस्से हर किस्से में तुम सदैव रहोगी , जिस तरह किसी पौधे के जीवन में बीज का महत्व होता है किंतु उस बीज से पौधे या पेड़ के रूप में विकसित होने के लिए वातावरण के यथार्थ तत्वों के समायोजन में मृदा , जल और वायु के अतरिक्त सूर्य के प्रकाश , जलवायु के अनुकूल परिस्थितियों के बहुमूल्य योगदान के अदृश्य होने की हम तुलना नहीं करते है । उसी प्...

बतों कन करी त्वे लठ्याली ||

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बतों कन करी त्वे लठ्याली , ये जिकुड़ा की आग तें,  कन्दुड़ी तरसी मेरी भग्यानी , मिट्ठी भोंण सी तें राग तें । बस माया अर मन्याखा सच्चा होंण सी क्या होन्दु , जब सदानी काण्डा लग्या ये निर्भगी भाग तें ॥ तुम राती का ज्वोंन सी यखुली चमकदे गैणों मा चित्त चुरे मन लुच्छी ली जेन्दें बिज्या आँखियों का स्विणों मा । तुम्हारु नखर्यालु मिजाज हो या हैंसी-हैंसी बच्चाण कु ढ़ंग  रची-बसी गये तुम शरीर का कोणा कोणों मा ॥ रतन्याली आँखी होली कैकी जग्वाली मा , मुखुड़ी खिलपत बणी कैका ख्यालों मा । नाकुड़ी तमतमाई रैन्दी किले गुस्सा मा बच्यांदी नी पर हर्ची छे कैका माया का सवालों मा॥ जाण्दु मैं भी छूँ , बिंगदी तु भी छे , मन उपजीगे माया बीज बात समझदी भी छे । छुयों मा कबरी तक रात कटेली , अंग्वाल मारी लगुली सी , जिकुड़ी भेटयोणों तरसदी तु भी छे। । फर्क भारी च तेरू-मेरू , जन घरती असमान मा , स्वीणा भी सच वी होन्दन जु दिख्योदीं रातब्याणीयों मा ॥ मन सी मन कु मेल सबु सी बडू होन्दु मेरी काळी  ना अल्झ लटुलियों सी ये द्धि मुख्या जमाने बातियों मा ॥ मैं रौं न रौं गैल तेरा सदानी  अगने त...

प्यार एक पागलपन

प्रेम कभी भी मांगने से प्राप्त नहीं होता है शायद प्रेम कभी प्रेम नहीं होता इसमें होता है बस दर्द, पागलपन , बैचैनी और ढ़ेरों मजबूरी ।।  ऐसी ही एक कहानी है जो सत्य है ।।  मैं सुबह अल्मोड़ा रोडवेज स्टेशन पर शाम की दिल्ली जाने की बस का पता करने गया । जो शाम 5.30 बजे की थी अल्मोड़ा से आनंद विहार आईएसबीटी के लिए । पूछताछ केंद्र पर टिकट मिलने का समय शाम 4.30 बजे का बताया गया ।। यानी मेरे पास पूरा दिन था और अल्मोड़ा में केवल मुझे #चितई #गोलज्यू मंदिर के दर्शन करने जाना था और मन में नंदा देवी के दर्शनों की इच्छा थी ।। जो मैं ने लगभग 2 बजे तक पूरी कर ली थी ।  अब यूं तो अल्मोड़ा से मेरी बहुत सी यादें जुड़ी है किंतु वो सब कभी और । दिल्ली जाने के लिए मेरे पास 2 ही ऑप्शन थे या तो हल्द्वानी स्टेशन से दिल्ली की बस पकड़ता या अल्मोड़ा मैं रुक कर शाम की बस का इंतजार करता । थके होने की वजह से या किसी और वजह से मैं ने अल्मोड़ा रोडवेज के पूछताछ केंद्र पर बने कमरे में इंतजार करना उचित समझा और साथ ही स्विच ऑफ होते मोबाइल को भी चार्ज करना जरूरी था क्योंकि अल्मोड़ा से वोल्वो बस नहीं थी और दिल्...