बतों कन करी त्वे लठ्याली ||
बतों कन करी त्वे लठ्याली , ये जिकुड़ा की आग तें,
कन्दुड़ी तरसी मेरी भग्यानी , मिट्ठी भोंण सी तें राग तें ।
बस माया अर मन्याखा सच्चा होंण सी क्या होन्दु ,
जब सदानी काण्डा लग्या ये निर्भगी भाग तें ॥
तुम राती का ज्वोंन सी यखुली चमकदे गैणों मा
चित्त चुरे मन लुच्छी ली जेन्दें बिज्या आँखियों का स्विणों मा ।
तुम्हारु नखर्यालु मिजाज हो या हैंसी-हैंसी बच्चाण कु ढ़ंग
रची-बसी गये तुम शरीर का कोणा कोणों मा ॥
रतन्याली आँखी होली कैकी जग्वाली मा ,
मुखुड़ी खिलपत बणी कैका ख्यालों मा ।
नाकुड़ी तमतमाई रैन्दी किले गुस्सा मा
बच्यांदी नी पर हर्ची छे कैका माया का सवालों मा॥
जाण्दु मैं भी छूँ , बिंगदी तु भी छे ,
मन उपजीगे माया बीज बात समझदी भी छे ।
छुयों मा कबरी तक रात कटेली ,
अंग्वाल मारी लगुली सी , जिकुड़ी भेटयोणों तरसदी तु भी छे। ।
फर्क भारी च तेरू-मेरू , जन घरती असमान मा ,
स्वीणा भी सच वी होन्दन जु दिख्योदीं रातब्याणीयों मा ॥
मन सी मन कु मेल सबु सी बडू होन्दु मेरी काळी
ना अल्झ लटुलियों सी ये द्धि मुख्या जमाने बातियों मा ॥
मैं रौं न रौं गैल तेरा सदानी
अगने तेरा ज्यूंण कु सेरी ज्वानी ।
स्याणी ह्वे भी नदान छे तू ,
सोची समझी बढ़ी अग्वाड़ी हे भग्यानी ॥
Poem by Baaduli
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