तुम और मैं।
कुछ किस्से होते है जिंदगी में जो अक्सर मन में आते है लिख दूं फिर मन ठहर जाता है । सोचता हूं मेरे किस्से है अगर इन्हें भी उकेर दिया तो, तुम्हारा और मेरा क्षणिक ही सही, वो साथ बस तुम्हारा और मेरा ही था । शायद जीवन के हर पल ये पल तुम्हारा मेरे होने अहसास करवायेंगे, मेरे चेहरे पर मुस्कान बिखेरेंगे , और उन्हीं में छिपा होगा वो दर्द वो पीड़ा जो पल पल तुमसे दूर होने से एक शांत ज्वालामुखी सी बस मेरे हृदय में ही सुलगती रहती है । शायद कभी शब्द ही नहीं हो मेरे पास जो तुम्हारे स्पर्श के अहसास को उकेरे सकें , तुम्हारे साथ बिताए पलों को खुद में ऐसे ही संजो कर रखे जैसे मैंने तुम्हारे चेहरे को अपने मन में प्रेम की माला में मोती सा संजो कर रखा है । तुम्हारे हर सच हर जूठ , हर नादानी , उस निश्छल प्रेम को यादों की माला में जीवन के धागे से पिरोया है ।
लिखने को तुम पर प्रेम ग्रंथ लिख दूं सारे जीवन के सार को तुम लिख दूं ।
नाम तुम्हारे जीवन का हर पल लिख दूं ।
हर सांस को न्योछावर तुम पर कर दूं ।
बन धड़कन तुम्हारे हृदय की स्वयं को तुम लिख दूं ।
पर शायद ये प्रेम , ये समर्पण , ये डर , मेरा पागलपन तुम सा कोई और भी ना समझे । मेरे प्रेम को तुम सा पवित्र ना समझे , मैं अपने प्रेम को ना राधा कृष्णा, राम सीता शिव पार्वती सा नहीं कहूंगा , क्योंकि लोग द्वेष यहां भी ढूंढ लेंगे ।
शायद मेरी भावनाओं में तुम्हे तराजू के पलड़े में तोल कर, अपनी राय में तुम्हें दोषी मान बैठे , अपनी कहानी बयां न करके खुद को प्रेम में हारा मान सकता हूं पर मेरे कहने से तुम्हें दोषी नहीं ।
शायद कुछ बातें होती ही हमेशा हृदय में गुप्त रखने के लिए होती है ।।
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