ये अल्फाज भी बहुत कुछ कहते हैं मगर जो आँखे समझा सकती हैं वो कोई और क्या

ये यादें

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दिन का चैन रातों की नींद तुम चुरा लो।।कुछ यूं निग़ाहें तुम हम से मिला लो ।।ये बेगाना भी अपना हो जाये तुम्हाराकुछ यूँ मेरे हाथों को अपने हाथों में थाम लो।।