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सहम सा गया वक्त का पहिया जैसे

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आहत हैं मेरी भावनाएं इस मर्म परिदृश्य को देख कर सहम सा गया वक्त का पहिया जैसे तीव्र मन की गति सी थी जिंदगी इस महामारी से ठहर सी गयी आभा जैसे सुना था कहीं या पढ़ा था कहीं, हैं परिवर्तन ही प्रकृति का नियम  जूझ रही जब जिंदगी मौत से क्या तेरा मजहब क्या बड़ा मेरा धर्म जो जीने की राह दिखाये जो नव आशा का अंकुर उगाये  डोलती सागर की लहरों में जो कस्ती जीवन की पार कराये ढूंढ उस जीवन की किरण को ढूंढे अपनी जननी को जैसे सहम सा गया वक्त का पहिया जैसे अनंत अंतरिक्ष की खोज में इस मूल धरा को भूल गये  उड़ने चले थे आसमां में बेतहासा आज दलदल में धंस गये करते रहे बेघर उन बेज़ुबानों को खुद का घर जला गये जला मन की बुराई को इस अग्नि में तू घृत के जैसे सहम सा गया वक्त का पहिया जैसे कोई ना कोई तो जाग रहा हैं इस विकट घोर अंधेरी रातों पर  दिन रात एक करके जो लगे हैं तेरे लिए तू उनपर एक उपकार कर  समेट ले खुद को घर में अपने शिशु माँ की गोद में जैसे सहम सा गया वक्त का पहिया जैसे तुझे ही ख़ुद लड़ना हैं तुझे ही खुद विजय श्री होना हैं तुझे ही फ़िर एक दिन इस देश को विश्व गुरु बनाना हैं ख़ुद सं...